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जीवन अमूल्य है, इसे आनंद और परोपकार में व्यतीत करें : दिगम्बर जैनाचार्य 108 श्री विशुद्ध सागर जी गुरुदेव


चर्या शिरोमणी दिगम्बराचार्य 108 श्री विशुद्ध सागर जी गुरुदेव ने नांदणी मठ में धर्मसभा को संबोधन करते हुए कहा कि ज्ञान के बिना परमात्मा और आत्मा की परिकल्पना भी नहीं कर सकते। जिस व्यक्ति के पास ज्ञान है वो कभी भी उग्र नहीं हो सकता। वह शीतल जल के सामान शांत रहता है। जब कोई संकट, विपत्ति, कष्ट, परेशानी आपके ऊपर आ जाये और आप कुछ निर्णय नहीं कर पा रहे हों, तो घबड़ाओ नहीं धैर्यपूर्वक अपने माता-पिता, इष्टजन या गुरुजनों को बताओ आपको निश्चित ही उचित उसका समाधान मिलेगा। पढ़िए राजेश जैन दद्दू की एक रिपोर्ट….


नांदणी मठ में चर्या शिरोमणी दिगम्बराचार्य 108 श्री विशुद्ध सागर जी गुरुदेव ने धर्मसभा को संबोधन करते हुए कहा कि अंतिम तिर्थेश वर्धमान स्वामी के शासन में हम सभी विराजते हैं। तीर्थंकर भगवान की पीयूष देशना जिनेंद्रवाणी जगतकल्याणी है। यह सर्वज्ञशासन, नमोस्तुशासन जयवन्त हो। जयवन्त हो वितरागी श्रमणसंस्कृती। आचार्यश्री विशुद्ध सागर महाराज जी ने कहा कि मित्रों हमेशा विवेक से काम लेना चाहिए। ध्यान से सुनिए, एक माँ भगवान के दर्शन करने मंदिर जाती है तो बहुमूल्य वस्त्र आभूषण पहने हुए होते हैं। प्रभु के दर्शन करने शरीर पर अलंकार पहन कर गई और जैसे गली में प्रवेश करती है पीछे से एक युवा आ जाता है, युवा ने चेन तो झटकी साथ में गर्दन भी छिल गई और चेन भी गई। मित्रों ये सत्य घटना है और वर्तमान में ये घटित भी हो रहा है इसलिए संभल कर चलें। महारज जी ने कहा कि एक अन्य सत्य घटना में चेन छीनने वाला आया और व्यक्ति ने उसे पहचान लिया। मित्रों, चोर लुटेरे यदि आप की सामग्री छीनने आए और यदि आसपास कोई नहीं हो तो आप पहचान भी जाओ तो अज्ञानी बन जाना, चेन ही जाएगी लेकिन जान बच जाएगी।

उपकार की राग में सत्यार्थ को मत भूल जाना

आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज जी ने कहा की बातें ध्यान से सुनना, सत्यार्थ को मत भूल जाना। मित्रों यशोदा नारायण कृष्ण की माँ है, लेकिन वह पालने वाली मां है। जन्म देने वाली मां तो देवकी ही है। उपकारी यशोदा है लेकिन सत्यार्थ देवकी है, उपकार की राग में सत्यार्थ को मत भूल जाना। मेरे मित्रों देवकी ने जन्म दिया है, लेकिन यशोदा ने पालन किया है। तब भी नारायण कृष्ण यह नहीं भूल पाए कि मेरी मां जन्म देने वाली देवकी भी थी। महाराज जी ने कहा कि आपके पिता ने आपको पालन कर बड़ा किया। आप कुछ दिनों के लिए बाहर गांव गए, तो वहां आपको कोई बड़ा उपकारी आदमी मिल गया। आप लौट कर उस व्यक्ति के साथ जयसिंगपुर आए और स्टेशन में किसी ने आपको पूछा कि यह कौन है? तो आपने कहा मेरे पिताजी हैं, जब तुम नांदणी अपने घर के पास आए और पुन: किसी ने पूछा कि यह कौन है तो आपने कहा मेरे पिताजी हैं। अरे अभागे बाजू में तेरे खुद के पिता भी खड़े थे, तुमने उन्हें देखा नहीं और चार दिन के उपकारी के पीछे मूल (स्वयं के पिता) को भूल गया।

ज्ञान के बिना परमात्मा और आत्मा की परिकल्पना भी नहीं कर सकते

आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज जी ने कहा कि जब तुम्हारी शादी हुई, तो पत्नी ने आप पर उपकार किया। नाना जगह से तुम्हारे चित्त को रोक लिया, तुमको रोटी खिलाती है, लेकिन मित्र उपकार करने वाली को देख कर,जन्म देने वाली माँ को मत भूल जाना। पत्नी ने उपकार किया है, लेकिन जन्म नहीं दिया है। सभी बेटे ध्यान से सुनो कि कोई ससुराल जाकर अपने ससुर को कहे पिताजी-पिताजी, यह व्यवहार से कहो ठीक है लेकिन यह कहे कि अब आप ही मेरे पिता हो अन्य कोई नहीं, ईमानदारी से बोलना जन्म देने वाले पिता का ह्रदय उस समय क्या बोलेगा? जिस दिन से तुम्हारी शादी हुई, उस दिन से आप ससुर का सम्मान करने लगे, अच्छी बात है लेकिन घर में बैठे पिताजी का अपमान अच्छी बात नहीं है। यदि ऐसा कर दिया, तो विश्वास मानिए, जीते जी पिता की हत्या है। चर्या शिरोमणी दिगम्बराचार्य श्री 108 विशुद्धसागर जी महाराज ने धर्मसभा में उपस्थित श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि ज्ञान के बिना परमात्मा और आत्मा की परिकल्पना भी नहीं कर सकते। जिस व्यक्ति के पास ज्ञान है वो कभी भी उग्र नहीं हो सकता। वह शीतल जल के सामान शांत रहता है। जब कोई संकट, विपत्ति, कष्ट, परेशानी आपके ऊपर आ जाये और आप कुछ निर्णय नहीं कर पा रहे हों, तो घबड़ाओ नहीं धैर्यपूर्वक अपने माता-पिता, इष्टजन या गुरुजनों को बताओ आपको निश्चित ही उचित उसका समाधान मिलेगा। जिससे आप शीघ्र ही विपत्ति से मुक्त हो जायेंगे। मित्रों आत्म-हत्या करना किसी समस्या का समाधान नहीं है, अपितु आत्महत्या तो एक महापाप है। जो स्वयं को तो कष्ट में डालेगा ही, साथ-ही-साथ ऐसा करने से आपके परिवार पर भी आपत्ति आएगी। समाज व परिवार की बदनामी होगी। आप ऐसा अपराध कभी न करें। समस्या का समाधान खोजें। जीवन अमूल्य है, इसे आनंद और परोपकार में व्यतीत करें। नर – तन प्राप्त करना अत्यंत कठिन है।

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