श्रीफल जैन न्यूज के अशोक कुमार जेतावत ने बताया कि आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज का श्रीमहावीर जी अतिशय क्षेत्र से मार्बल नगरी मदनगंज-किशनगढ़ की ओर विहार चल रहा है। आगामी जनवरी में किशनगढ़ में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव होना है। इस बीच शनिवार 17 दिसंबर को मुनि 108 श्री हितेंद्र सागर जी महाराज के गृहनगर में आचार्य संघ का प्रवेश हुआ। हितेंद्र सागर जी की दीक्षा के बाद पहली बार आचार्य संघ जब उनके गृह नगर पहुंचा तो समाज के लोग काफी उत्साहित नजर आए। मगर इसके एक दिन बाद 18 दिसंबर को ही सुबह 4 बजकर 10 मिनट पर संघस्थ मुनिश्री श्रेयस सागर जी महाराज का समाधिमरण से समाज को अपूरणीय क्षति पहुंच गई।
जानिए मुनिश्री श्रेयस सागर के बारे में सब कुछ
मुनिश्री श्रेयस सागर जी का जन्म सन् 1954 में गांव बोहेड़ा, जिला चित्तौड़गढ़ राजस्थान में हुआ. उनका गृहस्थ नाम महावीर प्रसाद भोपावत था। उनकी गृहस्थ माता बाबरी देवी और पिता मोती लाल जैन उदेपुरिया थे। महावीर भोपावत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद धर्मनगरी धरियावद को कर्मक्षेत्र बनाया। पुष्पा देवी से उनका विवाह हुआ और फिर तीन पुत्रियां और एक पुत्र को जन्म दिया। मुनिश्री के गृहस्थ जीवन के पुत्र सुनील भोपावत और पुत्रवधु लता देवी एवं पौत्र शुभक और युगल के साथ धरियावद में ही रहते हैं।
आचार्य वर्द्धमान सागर जी महाराज के सानिध्य में जनवरी 2001 में महावीर दिगंबर जैन मंदिर, धरियावद में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हुई थी। उस वक्त श्रेयस सागर जी महाराज गृहस्थावस्था में थे। उन्होंने अपनी गृहस्थ धर्मपत्नी के साथ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में सौधर्म इंद्र-इंद्राणी बनकर धर्मलाभ लिया था। इसके बाद वैराग्य मार्ग पर चलते हुए 20 फरवरी 2015 को निमाज जिला पाली (राजस्थान) में उन्होंने आचार्य वर्द्धमान सागर जी महाराज से जैनेश्वरी दीक्षा ग्रहण की। आचार्य श्री ने उनकी योग्यता को परखकर उन्हें सीधे ही मुनि दीक्षा दे दी। इस तरह महावीर भोपावत मुनि 108 श्री श्रेयस सागर जी महाराज बन गए।
धार्मिक संस्कारों से परिपूर्ण मुनिश्री के ग्रहस्थ अवस्था की धर्मपत्नी पुष्पा देवी जैन को भी सिद्ध क्षेत्र सिद्धवरकूट, मध्य प्रदेश में अक्टूबर 2016 में आर्यिका दीक्षा प्रदान की गई। उनका नाम आर्यिका 105 श्री श्रेय मति माताजी रखा गया। संघ सानिध्य में धर्म साधना करते हुए 2020 के मंगल वर्षायोग काल में बेलगांव जिला, कर्नाटक में श्रावण कृष्ण अमावस्या के दिन माताजी का सम्यक समाधिमरण हो गया।
काफी दिनों से स्वास्थ्य में थी गिरावट
मुनिश्री श्रेयस सागर जी महाराज के स्वास्थ्य में पिछले दो दिन से कुछ गिरावट देखी गई। उनके समाधिस्थ होने की खबर मिलते ही गृहस्थ सुनील भोपावत और उनकी पत्नी लता देवी उनके दर्शन के लिए संघ सानिध्य में पहुंच गए। रविवार को आचार्य श्री वर्द्धमान सागर जी महाराज संघस्थ मुनि, आर्यिका, ब्रह्मचारी भैया-बहिन, त्यागी व्रती, विद्वान वर्ग, श्रेष्ठीवर्ग और स्थानीय श्रावक-श्राविका के अपार समूह की साक्षी में मुनिश्री की पार्थिव देह को डोली में बैठाकर अंतिम यात्रा निकाली गई। इसके बाद जैन विधि विधान के अनुसार विभिन्न बोलियों के माध्यम से उनका अंतिम संस्कार किया गया। गृहस्थ पुत्र सुनील भोपावत ने दी मुखग्नि मुनिश्री की पार्थिव देह को मुखाग्नि गृहस्थ पुत्र सुनील भोपावत और अन्य बोलियों के पुण्यार्जक ने दी. इस अवसर पर सभी ने मुनिश्री के अंतिम संस्कार स्थल पर परिक्रमा कर अपने जीवन में भी सम्यक समाधिमरण के प्रति अपनी भावना व्यक्त की.
गृहस्थ गांव में श्रावक कर रहे थे इंतज़ार
आचार्यश्री संघ का आगामी वर्ष में किशनगढ़ से उदयपुर की ओर अप्रैल 2023 में मंगल विहार प्रस्तावित है। वागड़ क्षेत्र में धरियावद, मुंगाणा, पारसोला में आचार्य संघ के मंगल प्रवेश की कामना करते हुए सभी क्षेत्रवासी प्रतीक्षारत हैं। मुनिश्री के गृहस्थ गांव धरियावद के सभी श्रावक बेसब्री से मुनि अवस्था के बाद पहली बार मंगल प्रवेश की आस लगाए बैठे थे। मगर सभी की मन की कामना अधूरी ही रह गई। इससे पहले भी धर्मनगरी धरियावद के नगर गौरव मुनि श्री प्रवेश सागर जी महाराज, आर्यिका श्रेय मति माताजी और मुनि श्री पद्मकीर्ति सागर जी महाराज का भी मुनि-आर्यिका दीक्षा के बाद नगर प्रवेश नहीं हो पाया था और स्थानीय लोगों की आस अधूरी ही रही।