सारांश
आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज ने कहा पंचकल्याणक महोत्सव में कहा कि तीर्थंकर का जन्मदिन अंतिम जन्म होता है क्योंकि उनके जन्म के बाद वह दोबारा जन्म नहीं लेते। गर्भ कल्याणक के बाद जन्म कल्याणक फिर दीक्षा लेकर तप करते हैं फिर केवल ज्ञान प्रगट होने पर ज्ञान कल्याणक फिर घातिया और अघातिया कर्मों का नाश कर सिद्धालय मोक्ष को प्राप्त करते हैं।
मदनगंज-किशनगढ़। वात्सल्य वारिधि व राष्ट्र गौरव आचार्यश्री वर्धमान सागर महाराज ने कहा कि आत्मा कई भव में भ्रमण करती है, तब पूर्व वर्षों के संचित पुण्य से तीर्थंकर नामक कर्म का फल मिलता है। तीर्थंकर बालक के जन्म के 6 माह पहले से 14 करोड़ रत्न की प्रतिदिन वृष्टि होती है। तीर्थंकर बालक के जन्म के 6 माह पहले और जन्म के 9 माह बाद अर्थात 15 माह तक कुबेर द्वारा रत्नों की वृष्टि की जाती है। तीर्थंकर भगवान द्वारा रतन त्रय धर्म की वृष्टि की जाती है एवं देवताओं द्वारा रत्नों की वृष्टि की जाती है।
इंदिरा नगर स्थित शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर और सिटी रोड स्थित चन्द्रप्रभु मंदिर के श्रीमद जिनेन्द्र पंचकल्याणक प्रतिष्ठा प्राण महामहोत्सव के तीसरे दिन वर्धमान सभागार में आयोजित प्रवचन सभा में आचार्यश्री ने कहा कि जब भगवान का जन्म होता है तो उनका जन्म कल्याणक मनाया जाता है किंतु लौकिक जीवन में आप हर साल बर्थडे यानी जन्म दिवस मनाते हैं। तीर्थंकर का जन्मदिन अंतिम जन्म होता है क्योंकि उनके जन्म के बाद वह दोबारा जन्म नहीं लेते।
गर्भ कल्याणक के बाद जन्म कल्याणक फिर दीक्षा लेकर तप करते हैं फिर केवल ज्ञान प्रगट होने पर ज्ञान कल्याणक फिर घातिया और अघातिया कर्मों का नाश कर सिद्धालय मोक्ष को प्राप्त करते हैं। मोक्ष कल्याणक के बाद निर्वाण को प्राप्त होते हैं, यह उनका अंतिम जन्म होता है। आचार्यश्री के शिष्य मुनि हितेंद्र सागर ने भी प्रवचन दिए।
वात्सल्य वारिधि भक्त परिवार के राजेश पंचोलिया इंदौर ने बताया कि 27 जनवरी तक आचार्यश्री के प्रवचन प्रतिदिन सुबह हो रहे हैं। वहीं आहारचर्चा के बाद सामयिक व अन्य कार्यक्रम आरके कम्यूनिटी सेंटर में हो रहे हैं।
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