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धन के संग्रह में सुख नहीं, धर्म के संग्रह में सुख है’-मुनि श्री आदित्य सागर जी

न्यूज़ सौजन्य -राजेश दद्दू

इंदौर। ‘धन एक ऐसा मेहमान है जिसके आने में भी दुख और जिसके जाने में भी दुख है। धन सारी समस्याओं की जड़ है। धन से सुख की कल्पना व्यर्थ है। धन-संपत्ति से सुख होता तो हमारे तीर्थंकर धन संपत्ति का त्याग क्यों करते?’ उक्त उद्गार मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने शुक्रवार को समोसरण मंदिर कंचन बाग में प्रवचन देते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि आज धन बढ़ने के साथ-साथ आधुनिकता और लोगों की इच्छाएं भी बढ़ रही हैं लेकिन आध्यात्मिकता घट रही है। मुनिश्री ने आगे कहा कि अर्थ पुरुषार्थ करो, लेकिन धन के पीछे आसक्ति मत रखो, अनासक्ति रखो और अर्थ पुरुषार्थ उतना ही करो जिससे स्वयं का और परिवार का पेट भर जाए, पेटी नहीं। सुख धन के संग्रह में नहीं, धर्म के संग्रह में है। वही तुम्हारे काम आएगा और साथ जाएगा।

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प्रकाश श्रीवास्तव

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