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सर्वधर्म सभा में दी आचार्य श्री को विनयांजलि : दर्शन मात्र से ही भक्त हो जाते थे तृप्त – आचार्य प्रसन्न सागर महाराज


जैन धर्म के महामुनि संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के ब्रह्मलीन होने पर सर्व धर्म विनयांजलि सभा आयोजित की गई। इस मौके पर आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज की आचार्य श्री विद्यासागर जी पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म दिखाई गई। कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री अन्नपूर्णा देवी भी मौजूद थी। पढ़िए राजकुमार अजमेरा, नवीन जैन की रिपोर्ट…


झुमरीतिलैया। जैन धर्म के महामुनि संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी के ब्रह्मलीन होने पर सर्व धर्म विनयांजलि सभा आयोजित की गई। इस मौके पर आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर जी महाराज की आचार्य श्री विद्यासागर जी पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म दिखाई गई। इस डॉक्यूमेंट्री में उन्होंने इस धरती के भगवान आचार्य विद्यासागर जी के जीवन के कठिन तप, त्याग, तपस्या के प्रति अपने उद्गार और विनयांजलि को व्यक्त किया। कार्यक्रम में अन्तर्मना आचार्य श्री 108 प्रसन्न सागर गुरुदेव ने कहा कि संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर एक ऐसे संत थे, जिन्हें किसी जाति- मजहब, अपना- पराया, देसी- विदेशी से परहेज नहीं था। सभी धर्मों के अनुयायी उन्हें नमस्कार कर रहे हैं। वे संत नहीं, साक्षात् इस धरती के भगवान थे।

इस धरती पर उनके जैसा पूजनीय संत आज तक पैदा नहीं हुआ है। वह एक ऐसे वीतरागी महा संत थे, जिन्होंने आज तक अपने हाथों से पैसा, मोबाइल और भौतिक सामानों को हाथ नहीं लगाया। आचार्य भगवन विद्यासागर जी के आत्मा में पूरा भारत देश बसता था। भारतीय संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने हमेशा हस्तकरघा उद्योग, आयुर्वेद औषधालय की स्थापना, गायों की रक्षा के लिए सैकड़ों गौशालाएं की स्थापना की। बालिकाओं की शिक्षा संस्कार आत्मनिर्भरता के लिए स्कूल कॉलेज की स्थापना की और जेल में प्रवचन देकर कैदियों के जीवन में सुधार आदि अनगिनत राष्ट्र निर्माण के कार्य किए। संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर समुद्र के उसे खारे पानी के समान थे, जिनके नजदीक जाकर भक्तों की प्यास बुझती ही नहीं थी।

आचार्य विद्यासागर एक ऐसे संत थे जिन्होंने कभी भी घड़ी नहीं देखी। अपने जीवन को ही समय बना लिया। उनके दर्शन मात्र पास में बैठने से ही भक्तों के मन तृप्त हो जाते थे। सारे विटामिन उनके पास बैठने से ही मिल जाते थे। उनके संयम में अनुराग था। तप प्रतिक्रमण अंतरंग से करते थे। संत शिरोमणि विद्यासागर जी के लिए बोलने के लिए मेरे पास शब्द कम हैं। ऐसे महा संत इस भारतवर्ष में हर युग में पैदा हो प्रत्येक 10-20 वर्षों में पैदा हों, तभी यह भारत देश अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। उन्होंने कहा कि झारखंड मे जैन धर्म का सर्वोच्च तीर्थ सम्मेद शिखरजी पर्वत के ऊपर रहकर मेरे द्वारा 557 दिन तक कठिन मौन तपस्या उपवास की साधना गुरुदेव विद्यासागर जी के आशीर्वाद से ही मैंने की है। गुरुदेव ने मुझसे कहा कि अपने ज्ञान तप के टॉर्च का प्रकाश अपनी आत्मा में लगाओ।

भारत रत्न देने की मांग

इस मौके पर विशिष्ट अतिथि केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने आचार्य विद्यासागर जी के समाधि लीन होने पर कहा कि यह राष्ट्र के लिए अपूरणीय क्षति है। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव कल्याण और राष्ट्र कल्याण को दिया है। उनके बताए हुए आदर्श को अपनाना ही सच्ची श्रद्धांजलि है। समाजसेवी सुरेश झाझंरी के द्वारा आचार्य विद्यासागर जी को भारत रत्न की उपाधि देने की मांग पर अन्नपूर्णा देवी जी ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री जी से इस विषय पर बात करूंगी एवं आप सभी की भावनाओं को प्रधानमंत्री के पास तक पहुंचाऊंगी। इस मौके पर विधायक डॉ. नीरा यादव ने कहा कि आचार्य विद्यासागर जी जन-जन के आराध्य थे।

जिला परिषद अध्यक्ष रामधन यादव पूर्व अध्यक्ष शालिनी गुप्ता, वार्ड पार्षद पिंकी जैन, सिख समाज, मारवाड़ी समाज, राजपूत समाज एवं कई समाज स्वयंसेवी संस्थाओं के अध्यक्ष मंत्री पदाधिकारी ने अपनी बातों को रखा और गुरुदेव के प्रति अपने श्रद्धांजलि व्यक्त की। इस कार्यक्रम के संयोजक मनीष सेठी थे। इस मौके पर सुनील छाबड़ा, मनीष सेठी, दिलीप जैन समाज के उप मंत्री नरेंद्र झांझरी, राज छाबड़ा, सुरेंद्र काला, पूर्व अध्यक्ष ललित सेठी, सुशील छाबड़ा , कमल सेठी, डिंपल छाबडा, सुबोध गंगवाल, नवीन पांडया , आशा गंगवाल, नीलम सेठी, सोना सेठी, त्रिशला गंगवाल, सीमा सेठी, तारामणि सेठी, जैन समाज के प्रभारी राजकुमार अजमेरा, नवीन जैन, मनीष सेठी ने भी आचार्य विद्यासागर जी के प्रति अपनी विनयांजलि अर्पित की।

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