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दोहों का रहस्य -37 भोग-विलास में उलझकर अपना समय न गंवाएं : जीवन को आत्मज्ञान, धर्म, और सच्चे लक्ष्य की प्राप्ति में लगाएं


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की सैंतीसवीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


आया था किस काम को, तू सोया चादर तान।
सूरत संभाल ए गाफिल, अपना आप पहचान।

कबीर दास जी इस दोहे में मनुष्य को उसकी आत्मिक जड़ता और अज्ञानता से जगाने का प्रयास कर रहे हैं। वे समझाते हैं कि यह जीवन व्यर्थ की चीज़ों में खोने के लिए नहीं है, बल्कि इसे आत्मज्ञान, धर्म, और सच्चे लक्ष्य की प्राप्ति में लगाना चाहिए। लेकिन अधिकतर लोग इस सत्य को भूलकर माया, मोह, और आलस्य में फंसकर अपनी आत्मा को सोने देते हैं।
“आया था किस काम को, तू सोया चादर तान”
यहां “चादर तानकर सोना” केवल शारीरिक नींद नहीं, बल्कि अज्ञान, आलस्य, और आत्ममुग्धता का प्रतीक है।
मनुष्य को संसार में एक विशेष उद्देश्य से भेजा गया है—सत्य की खोज, आत्मज्ञान, और मोक्ष प्राप्ति।
लेकिन वह इस दुनिया के भोग-विलास, मोह, धन और ऐश्वर्य में इतना उलझ जाता है कि अपने असली उद्देश्य को भूल जाता है।
यह संसार एक परीक्षा-स्थल है, यहां हमें धर्म, सत्य, और आत्मज्ञान की खोज करनी है, न कि केवल भोग-विलास में उलझकर अपना समय गंवाना है। यदि मनुष्य माया और भौतिक सुखों के चक्कर में पड़ा रहेगा, तो वह कभी सच्चे आनंद को प्राप्त नहीं कर पाएगा।
“सूरत संभाल ए गाफिल, अपना आप पहचान” (हे अज्ञानी, अपनी चेतना को संभाल और स्वयं को पहचान)
यहाँ कबीर जी समझाते हैं कि जब तक इंसान अपनी असली पहचान (आत्मा) को नहीं समझेगा, तब तक वह अज्ञानता में सोया रहेगा।
लोग धन, पद, प्रतिष्ठा, और रिश्तों के जाल में इतने उलझ जाते हैं कि वे यह भूल जाते हैं कि यह सब नश्वर है।
जो व्यक्ति अपने भीतर झांककर अपने वास्तविक स्वरूप (आत्मा) को समझ लेता है, वही जीवन के वास्तविक सुख और शांति को प्राप्त करता है।
यह दोहा हमें आत्म-जागरण (Self-Realization) की प्रेरणा देता है।
जो व्यक्ति अज्ञान, आलस्य, और भोग-विलास में पड़ा रहेगा, वह जीवन का असली उद्देश्य खो देगा।
लेकिन जो स्वयं को पहचानकर आध्यात्मिक पथ पर चलेगा, वही सच्चा ज्ञान और आनंद प्राप्त करेगा।
“जागो, अपने असली स्वरूप को पहचानो, और इस जीवन को व्यर्थ मत गंवाओ!”

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