इससे पहले श्रद्धेय क्षुल्लक श्री 105 प्रज्ञांश सागर जी महाराज का समस्त समाज द्वारा भावभीना स्वागत किया गया । धर्मसभा को संबोधित करते हुए क्षुल्लक श्री ने कहा कि जिस प्रकार परीक्षा के पश्चात् परिणाम की चिंता रहती है और परिणाम घोषित होने पर निश्चिन्तता आ जाती है, ठीक उसी प्रकार जीवन में संयम से पूर्व चिंता रहती है और संयम धारण करने पर शांति का अनुभव होता है । संयमी प्राणी के परिणाम सदा निर्मल और स्वच्छ होते हैं ।
क्षुल्लक श्री ने आगे कहा कि अज्ञानी प्राणी लम्बे समय तक जीना चाहता है लेकिन संयमी व्यक्ति उस मार्ग को ढूंढता है जो उसे मोक्ष की ओर ले जाए। वह सम्यकदर्शन का पालन करता है, सम्यकज्ञान को प्राप्त करता है और सम्यकचारित्र को आचरण में उतारता है। मनुष्य जब उत्तम संयम की ओर बढ़ जाता है तो उसे दुनिया की सारी सम्पदा फीकी लगने लगती है, चारित्र ही सम्पदा हो जाती है।
संयम धारण करने पर बहुत से पाप कर्म स्वत: ही निर्जरा को प्राप्त हो जाते हैं । जिस प्रकार बिना ब्रेक की गाड़ी अनुपयोगी है, ठीक उसी प्रकार संयम के बिना जीवन व्यर्थ है। संयम का मार्ग पहाड़ पर चढ़ने जैसा कठिन है और संयम के अभाव में जीव ऐसा फिसलता है जहां आपको कोई बचा नहीं सकता।
अतः जीवन में संयम आवश्यक है बिना संयम के मानव और दानव में अन्तर नहीं। उल्लेखनीय है कि क्षुल्लक श्री का रानी बाग से मंगल विहार कर रोहिणी व पानीपत में धर्मप्रभावना करते हुए चंडीगढ़ में मंगल प्रवेश हुआ।
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