ललितपुर | चिंतन समूह की सातवीं वेबिनार दि. 22 मई 2021 को श्री प्रदीप जी जैन (PNC, आगरा) की अध्यक्षता में संपन्न हुई. वेबीनार का विषय था “”राष्ट्रीय नेतृत्व वर्तमान सन्दर्भ में सक्षम कैसे बने”. मंगलाचरण डॉ. श्रेयांस कुमार जैन, बडौत ने किया. साथ ही उन्होंने समाज की एक बड़ी आवादी में व्याप्त गरीबी, महासभा के अध्यक्ष श्री निर्मल कुमार सेठी जी के निधन से उत्पन्न स्थिति, साधुओं की समस्यायें तथा उनमें व्याप्त शिथिलाचार, अनूप-मण्डल द्वारा जैन संतों को परेशान करने संबंधी आदि विविध विषयों पर ध्यान आकर्षित कराया. साथ ही उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि “चिंतन समूह” के सदस्यों की संख्या बढ़ानी चाहिए तथा विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे लोगों को जोड़ना चाहिए.डॉ. अनिल कुमार जैन, जयपुर ने पिछली छह वेबिनरों का निम्न संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत करते हुए बताया किदि. 15 अगस्त 2020 (स्थापना) : भारत वर्ष के 74वें स्वाधीनता दिवस दि. 15 अगस्त 2020 को डॉ चिरंजीलाल बगड़ा (कोलकाता), श्री अनूपचंद जैन एडवोकेट (फिरोजाबाद), डॉ अनिल कुमार जैन (जयपुर) एवं श्री राजेन्द्र महावीर (सनावद) ने एक वेबिनार बैठक में “चिन्तन समूह” नाम से जैन समाज के चुने हुए तटस्थ, प्रबुध्द एवम् स्वतंत्र विचारक लोगों का विविध समसामयिक विषयों पर समाज को मार्गदर्शन करने हेतु एक मंच के गठन करने का निर्णय लिया. यह भी तय किया गया कि यह कोई नई संस्था नहीं है, यह मंच व्यक्तिगत महिमा मंडन एवं खंडन-मंडन की गतिविधियों से दूर रहेगा तथा समाज को सिर्फ दिशा निर्देशन का कार्य करेगा, विचार थोपने या आदेश देने का कोई कार्य नहीं करेगा. इसके पश्चात् पांच वेबीनरों में जिन विषयों पर चर्चा हुई वह निम्न प्रकार हैं:दिनांक 12 सितंबर 2020 – “दिगम्बर जैन समाज : दशा और दिशा” दि. 27 सितम्बर 2020 – “दिगम्बर जैन समाज में राष्ट्रीय एवं सामाजिक नेतृत्व की स्थिति”दिनांक 26 नवम्बर 2020 – “सर्वमान्य नेतृत्व, विकल्प – क्या और कैसे”दिनांक 13 दिसंबर 2020 – (1) “शास्त्रानुसार साधु की प्रणम्यता का आधार”, (2) “नारी शिक्षा: संस्कार संरक्षण के संदर्भ में”, तथा (3) “दान राशि : सदुपयोग कितना”दिनांक 27 दिसंबर 2020 – “सर्वमान्य नेतृत्व : उत्तर एवं दक्षिण में सामंजस्य के सूत्र”. इस वेबीनार में स्वस्ति श्री भट्टारक डॉ. देवेन्द्रकीर्ति स्वामीजी (हुमचा) तथा स्वस्ति श्री चरुकीर्ती स्वामीजी (मूडबद्री) भी सम्मलित हुए.
इसके पश्चात् श्री अनूपचंद जी, फिरोजाबाद ने विषय का प्रवर्तन करते हुए कहा कि संस्थाओं को हम मात्र सलाह देंगे, वे ये न समझें कि हम उनके कामों में हस्तक्षेप कर रहे हैं. उन्होंने मुनियों में बढ़ती उत्सव-प्रियता, शिखरजी के मुकदमें, बिना कुछ ठोस परिणाम वाली निरंतर बढ़ती संस्थाओं, तथा निष्पक्ष पत्रों के अभाव पर भी चिंता व्यक्त की. राजस्थान के कुछ स्थानों पर अनूप-मण्डल द्वारा जैन समाज व संतों के प्रति की जा रहीं शरारतपूर्ण हरकतों की निंदा की. श्री पारस जी बज, अहमदाबाद ने बताया कि शिखरजी पर जैनों की दोनों सम्प्रदायों में शीध्र समझौता होने कि उम्मीद है. धर्म विरुद्ध आचरण करने वाले साधुओं पर भी अंकुश लगना चाहिए. श्री विजय जी लुहाडिया, अहमदाबाद ने कहा कि हमें विषयांतर न होकर मात्र एक विषय पर ही चर्चा को केन्द्रित करना चाहिए तथा समस्या के हल की दिशा में कार्य होना चाहिए. उन्होंने यह भी सलाह दी कि संत कैसे होने चाहिए, इसकी जानकारी आम लोगों को देने के लिए इस संबध में पोस्टर मंदिरों में लगवाने जाने चाहिए.श्री हँसमुख गांधी, इंदौर ने कहा कि संस्थाओं के कार्य विभाजित हैं, अतः एक संस्था को दूसरे के काम में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, सामाजिक नेतृत्व समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य तथा सेवा करे. सामाजिक संस्थाओं को भी चिंतन समूह से जोड़ना चाहिए तथा उनसे भी input लेना चाहिए. उनकी समस्याओं को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए. संतों को सामाजिक संस्थाओं के कार्य-कलापों से दूर रहना चाहिए. श्री जमनालाल हपावत, मुम्बई ने कहा कि महासभा में मेरे साथ अच्छा नहीं हुआ, देश के सभी प्रबुद्ध महानुभावों का कर्तव्य था कि जो ग़ैर क़ानूनी ग़लत हो रहा है उस पर वे अपनी प्रतिक्रिया देते तो मुझे भी ख़ुशी होती व समाज में अच्छा संदेश जाता. उन्होंने आगे कहा कि साधु-संत हममें से ही बनते हैं, उनकी व्यवस्था पर समाज को ध्यान देना चाहिए ताकि वे अपने रास्ते पर से भटके नहीं. खान में से तो पत्थर ही निकलता है, हीरा नहीं. यदि कोई अपने आप को तराशता है तभी हीरा बनता है. यह बात उन श्रावकों को ध्यान रखना चाहिए जो मुनि बनना चाहते हैं.श्री विनोद जी वाकलीवाल, मैसुर ने कहा कि हम संस्थाओं को निर्देश नहीं, बल्कि सलाह दें. उन्होंने दक्षिण में जैन समाज की स्थिति का भी जिक्र किया. कर्नाटक की सरकार द्वारा जैनों की जगह को मुसलमानों को दिए जाने की भी निंदा की तथा कहा कि हमारे नेतृत्व को इस पर एक्शन लेना चाहिए. उन्होंने प्रश्न किया कि क्या हम किसी संस्था को समझा सकते हैं? डॉ वीरसागर जी, दिल्ली ने कहा कि हमें अपने प्रयास चालू रखने चाहिए. उन्होंने सामाजिक संस्थाओं में संगठित गणतंत्र की व्यवस्था की आवश्यकता पर भी जोर दिया तथा कहा कि अच्छे कामों को highlight करना चाहिए. उनका मानना था कि समाज में एक ऐसा पत्र या पत्रिका होनी चाहिए जो निष्पक्ष होकर सभी को represent करे.श्री राजेन्द्र महावीर, सनावद ने कहा कि संस्थाओं में योग्य व्यक्तियों को आगे लाना चाहिए, मुनि संस्थाओं में हस्तक्षेप करके उनमें समस्यायें पैदा करते रहते हैं, उन्हें रोकना चाहिए. विद्वानों को भ्रष्ट साधुओं का वहिष्कार करना चाहिए. डॉ सुनील संचय, ललितपुर ने कहा कि आज अनेक जैन परिवार कोरोना के कारण आर्थिक समस्या से जूझ रहे हैं, राष्ट्रीय नेतृत्व को इस महामारी के सन्दर्भ में सबल सक्षम एवं त्वरित प्रभावी कदम उठाने की अत्यधिक आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि विचार-विमर्श से रास्ते मिलते हैं, नई राह मिलती है लेकिन विचार-विमर्श तक ही हमारा चिंतन सीमित न रह जाय.डॉ चिरंजीलाल बगड़ा, कोलकाता ने कहा कि समस्यायें तो सबों को पता हैं, उनका समाधान क्या हो, इस पर चिंतन होना चाहिए. अन्यथा हम समस्याओं की ही जुगाली करते रहेंगे. हमको साधुओं की नहीं बल्कि संस्थाओं के बारे में बात करनी चाहिए. उन्होंने “चिंतन समूह विचार मंच” बनाने का सुझाव भी दिया.सभा के अध्यक्ष श्री प्रदीप जी जैन PNC ने कहा कि आज की चर्चा बहुत सार्थक रही तथा सभी ने बहुत ही स्पष्ट एवं नए विचार रखे. उन्होंने कहा कि हम संस्थाओं को मजबूत करें, उन्हें आवश्यक उचित सलाह दें. साधुओं को संस्थाओं के कामों में दखल नहीं देना चाहिए. जो तथाकथित मात्र वेशधारी मुनि अपनी चर्या का निर्वहन नहीं करते हैं उन पर control होना चाहिए. अंत में महासभा के अध्यक्ष श्री निर्मल कुमार सेठी जी, श्रीमती इंदु जैन (टाइम्स ऑफ़ इंडिया) सहित समाज के दिवंगत सभी गणमान्य व्यक्तियों के निधन पर शोक व्यक्त किया तथा श्रद्धांजली अर्पित की. इसके साथ ही सभा समाप्त हो गई.
– डॉ. अनिल कुमार जैन, जयपुर
डॉ. सुनील जैन संचय, ललितपुर
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