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शांतिनाथ दिगंबर जैन पाठशाला के बच्चों ने शिक्षाप्रद प्रस्तुति दी: नाटिकाओं के मंचन में उपस्थित समाजजनों को किया भावुक 


महावीर जयंती की संध्या पर श्री शांतिनाथ जैन पाठशाला के बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम में शिक्षाप्रद प्रस्तुति दीं। सभी को भावुक कर गई। भगवान को पालना झुलाने की प्रस्तुति प्रभावी रही। नाटक के माध्यम से स्वाघ्याय का महत्व भी समझाया। रामगंजमंडी से पढ़िए अभिषेक जैन लुहाड़िया की यह खबर…


रामगंजमंडी। महावीर जयंती की संध्या पर श्री शांतिनाथ जैन पाठशाला के बच्चों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम में शिक्षाप्रद प्रस्तुति दीं। जो सभी को भावुक कर गई। कार्यक्रम का शुभारंभ भगवान महावीर के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कर समाज के वरिष्ठ जनों ने किया। सर्वप्रथम माता त्रिशला के 16 स्वप्नों का दृश्य, तीर्थंकर बालक के जन्म के साथ कुंडलपुर नगरी की धन्यता के नृत्य किए गए। जन्म कल्याण की खुशियां मनाई गई। कई भजनों ‘झूले पालना जन्मे महावीर, हो जी मां ने देखे 16 सपन’े की प्रस्तुतियां दी गई। भगवान को पालना झुलाने की प्रस्तुति प्रभावी रही। बच्चों ने वन्यजीव बनकर प्रस्तुति देते हुए जंगल-जंगल बात चली है त्रिशला मां के आगन में फूल खिला हैं की प्रस्तुति देकर सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा।

वृद्धावस्था वृद्धाश्रम की जीवंत प्रस्तुति रही 

लघु नाटिकाओं द्वारा अलौकिक संदेश दिया गया। जिसमें दर्शाया गया कि स्वाध्याय का महत्व क्या होता है। यह दुनिया स्वार्थ का संसार है और स्वार्थी दुनिया में लोग किस तरह से अपने माता-पिता को भी घर से बाहर कर देते हैं। वृद्धावस्था वृद्धाश्रम की जीवंत प्रस्तुति दी गई। किस तरह से मां अपने बेटे को वहां भी याद करती हैं और बच्चा मां को नहीं मिलता है। जब यह प्रस्तुति दी गई तो हर कोई भावुक नजर आया एवं सभी की आंखें नम दिखाई दी। इसमें संदेश दिया गया कि वृद्धावस्था में अपने माता-पिता को ना छोड़े। इसी के साथ जीवन में स्वाध्याय का क्या महत्व होता है। यदि स्वाध्याय एवं संस्कार जीवन में होंगे तो बच्चा विपरीत दिशा में नहीं जाएगा। स्वाध्याय का क्या महत्व होता है और जीवन में संस्कारों का क्या महत्व होता है। इस तरह की नाटिकाओं से समझाया गया। जिनदत्त और धनदत्त सेठ पर एक नाटिका का मंचन भी किया गया। जिसमें बताया गया कि जीवन में कभी भी बेईमानी नहीं करना चाहिए। छोटे-छोटे बच्चों द्वारा दी गई प्रस्तुतियां अपने आप में संस्कारों का जीवंत प्रभाव परिलक्षित कर रही थी। साथ ही यह शिक्षा भी दी गई कि सभी माता-पिता को बच्चों को जरूर पाठशाला भेजना चाहिए। कार्यक्रम का निर्देशन कनकमाला जैन ने किया। संचालन प्रशांत जैन आचार्य ने किया।

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