श्रवणबेलगोला के समाधिस्थ बड़े स्वामी जी चारूकीर्ति भट्टारक जी को सामाजिक और धार्मिक योगदान के लिए जाना जाता है। उन्होंने समाज में नैतिकता, आध्यात्मिकता और अहिंसा के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने अपने जीवन को जैन धर्म के सिद्धांतों के पालन और शिक्षा में समर्पित कर दिया। स्वामी जी ने अपने प्रवचनों के माध्यम से समाज में नैतिकता और अहिंसा के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य किया। उनका जीवन और कार्य न केवल जैन समुदाय के लिए, बल्कि संपूर्ण समाज के लिए प्रेरणादायक है। विभिन्न विद्वानों ने समय-समय पर स्वामी के बारे में बहुत कुछ लिखा है। स्वामी जी की 75वीं जन्मजयंती के उपलक्ष्य में उन सभी आलेखों का प्रकाशन श्रृंखलाबद्ध रूप में श्रीफल जैन न्यूज पर किया जा रहा है। इसकी पहली कड़ी में आज पढ़िए आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज का आलेख….
भट्टारक चारुकीर्ति जी स्वामी श्रवणबेलगोला के अकस्मात् देवलोक गमन होने पर वात्सल्य वारिधि आचार्य श्री वर्धमानसागर जी महाराज ने श्रवणबेलगोला तीर्थ के चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी जी के जीवन कृतित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भगवान् बाहुबली के परम भक्त श्री चारूकीर्ति भट्टारक स्वामी जी का समाधिमरण हो गया है। यह समाचार सुनकर के पूरा पिछला इतिहास स्मृति पटल पर घूमने लगा। चारूकीर्ति भट्टारक जी ने आचार्य शांतिसागर महाराज की परम्परा को बहुत सम्मान दिया। सम्मानपूर्वक उन्होंने 3 महामस्तकाभिषेक 1993, 2006, 2018 को अपने सान्निध्य मे सम्पन्न कराया। उनका अचानक देवलोक गमन होना सारी समाज के लिए दुःखदाई है। 1981 में आचार्य विद्यानंदी जी महाराज के सान्निध्य में सहस्त्र शताब्दी महोत्सव सम्पन्न कराया, यह उनके जीवन की बड़ी भारी उपलब्धि कही जा सकती है। उन्होंने महामस्तकाभिषेक को सम्पन्न कराके जो हर 12 वर्षों में होता है, जिनधर्म की, भगवान् बाहुबली स्वामी की जो प्रभावना की, उसे भुलाया नहीं जा सकता। स्वामीजी सभी को यथोचित सम्मान देते थे, यह उनकी विशेष बात थी। उनके मार्गदर्शन में श्रवणबेलगोला में महामस्तकाभिषेक के अलावा और भी अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य हुए हैं जो उन्हें सदैव जीवंत बनाए रखेगें।
स्वामीजी के लिए भगवान् बाहुबली से प्रार्थना करते हैं कि उन्होंने जिस प्रकार से श्रवणबेलगोला तीर्थ को विश्व प्रसिद्ध की ऊंचाइयों तक पहुंचाने का प्रबल पुरुषार्थ किया, इसी प्रकार वे भगवान् बाहुबली के परम भक्त रहे हैं और उनकी भावना भी थी कि मैं दीक्षा लेकर भगवान बाहुबली जैसी साधना कर सकूं, ऐसा मुझे आशीर्वाद दीजिये।
वो संभव नहीं हो सका। लेकिन हमको जहां तक ध्यान है उन्होंने अपनी साधनाओं को बहुत पहले से शुरू कर रखा था। अपने जीवन में वे सदैव सावधान रहे। आज श्रवणबेलगोला जिन ऊंचाइयों को छू रहा है, वह भट्टारक चारूकीर्ति जी स्वामी के प्रबल, अथक पुरुषार्थ के कारण ही संभव हो पाया है। वे महनीय कार्यों के कारण सदैव याद किये जाते रहेंगे।
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