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ओम का उच्चारण करने से हमारी सारी शक्ति ध्यान केंद्रित होती हैः मुनिश्री पुण्यसागर जी ने धर्मसभा में बताई ओम की महत्ता

धरियावद। जीवन का प्रारंभ और अंत ओम के उच्चारण के साथ होता है। इसे सभी धर्म के अनुयायी स्वीकार करते हैं। सभी मंत्रों का उच्चारण ओम से शुरू होता है। इसकी विशाल महिमा है। ओम में तीन लोक समाहित हैं। यह विचार मुनिश्री पुण्यसागर जी महाराज ने श्री महावीर स्वामी दिगंबर जैन मंदिर (धरियावद) में रविवार को प्रातःकालीन धर्मसभा में व्यक्त किए।

मुनि श्री पुण्य सागर जी महाराज ने कहा कि ओम ह्रीं नमः का उच्चारण जीवन में निरंतर करते रहना चाहिए। समाधि के समय क्षपक के शरीर की शक्ति जब क्षीण हो जाती है, तब ओम के उच्चारण करते-करते क्षपक अंतिम क्षणों में समतापूर्वक देह का विसर्जन कर सम्यक समाधिमरण को प्राप्त करता है। ओम का उच्चारण करने से हमारी सारी शक्ति ध्यान केंद्रित होकर शक्ति प्राप्त होती है। इसके उच्चारण से गूंगे व्यक्ति की वाणी तक खुल जाती है। मुनिश्री ने गूंगी मां-बेटी का कथानक सुनाकर बताया कि जीवन में लगातार ओम के उच्चारण करने से गूंगी मां किस तरह एक अच्छी गायिका बनकर जीवन में तिरस्कार से पुरस्कार (सम्मान) को प्राप्त करती है।

संस्कार जाग्रत करने का पुरुषार्थ करें

पंच परमेष्ठी वाचक ओमकार ध्वनि उच्चारण से सभी प्रकार की आधि-व्याधियां नष्ट हो जाती हैं लेकिन, आवश्यकता है श्रद्धा और भक्ति पूर्वक उच्चारण करने की। अतः जीवन में ‘ओम ह्रीं नमः’ का उच्चारण करने की शक्ति, सामर्थ्य और संस्कार जाग्रत करने का सभी जीवों को पुरुषार्थ करना चाहिए। इससे जीवन के सारे कष्ट और संकट दूर हो जाते हैं। ऐसी शक्ति सामर्थ्य प्रत्येक मनुष्य (जीव) प्राणी मात्र में पाई जाती है।

आध्यात्मिक मार्ग संसार सागर से पार कराता है

श्रीफल जैन न्यूज के अशोक कुमार जेतावत ने बताया कि इसके पूर्व धर्मसभा में मुनि पुण्यसागर जी महाराज के संघस्थ शिष्य मुनि मुदित सागर जी महाराज ने धर्मसभा में कहा कि जीवन में दो ही मार्ग होते हैं, एक लौकिक और दूसरा आध्यात्मिक। लौकिक मार्ग संसार में भटकाता है और आध्यात्मिक मार्ग संसार सागर से पार कराता है।

गुरु के प्रवचन का श्रवण जरूर करें

भक्तामर स्त्रोत के पाठ को निरंतर करने वाले मनुष्य के कर्म एक न एक दिन अवश्य क्षय हो जाते हैं। लौकिक मार्ग की सफलता जीवन में अर्थाेपार्जन में होती है जबकि, आध्यात्मिक मार्ग से ऐसे सुख की प्राप्ति होती है कि फिर उसके बाद किसी भी सुख की आवश्यकता नहीं रहती है। जीवन में कुछ कर सको या नहीं लेकिन, सभी को गुरु के प्रवचन का श्रवण अवश्य करना चाहिए। इससे मति सुधरती है और जिसकी मति सुधरती है उसकी गति अवश्य सुधर जाती है।

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