डूबते हुए सूर्य का दर्शन– यह इस बात का संकेत है कि महावीर के मार्ग को प्रकाशित करने वाला आगम का ज्ञान उत्तरोत्तर अस्त होता हुआ समाप्त होगा।
कल्पवृक्ष की शाखा का भंग– यह इस बात का संकेत कि भविष्य में राजपुरुष वैराग्य धारण नहीं करेंगे।
सछिद्र चन्द्रमण्डल – यह इस बात का संकेत है कि विधर्मियों और नास्तिकों द्वारा धर्म का मार्ग छिन्न-भिन्न किया जाएगा।
बारह फणवाला सर्प – यह इस बात का संकेत है कि इस उश्ररापथ में बारह वर्ष तक भयंकर काल-वैषम्य होगा।
लौटता हुआ देव विमान- यह इस बात का संकेत है कि इस काल में देव, विद्याधर और ऋद्धिधारी सन्तों का अवतरण पृथ्वी पर नहीं होगा।
दूषित स्थान में खिले हुए कमल– यह इस बात का संकेत है कि कुलीन और प्रबुद्ध जन भी अनीति और अधर्म की ओर आकर्षित होंगे।
भूत–प्रेतों का वीभत्स नृत्य– यह इस बात का संकेत है कि जनमानस पर अब प्रायः उनकी ही छाया रहेगी।
जुगनू का चमकना– यह इस बात का संकेत है कि धर्म की ज्योति जिनके भीतर प्रज्ज्वलित नहीं है, ऐसे पाखण्डी लोग भी धर्मोपदेशक बनकर, धर्म के नाम पर लोकरंजन और स्वार्थ-साधन करेंगे।
कहीं-कहीं जल सहित शुष्क सरोवर– यह इस बात का संकेत है कि धर्म की स्व-पर-कल्याणी वाणी का तीर्थ धीरे-धीरे शुष्क हो जाएगा। कहीं-कहीं ही उसका अस्तित्व शेष बचेगा।
स्वर्ण–थाल में खीर खाता हुआ श्वान– यह इस बात का संकेत है कि आगामी काल में नीच वृत्ति वाले चाटुकार ही लक्ष्मी का उपभोग करेंगे। स्वाभिमानी जनों को वह प्रायः दुष्प्राप्य होगी
स्वप्न में गजारूढ़ मर्कट– यह इस बात का संकेत है कि भविष्य में राजतंत्र, चंचल गतिवाले अनुकरणपटु जनों के हाथों में पड़कर विद्रुपित होगा।
मर्यादा का उल्लंघन करते समुद्र की लहरें– यह इस बात का संकेत है कि अब शासक और लोकपाल, न्याय-नीति की सीमाओं का उल्लंघन करेंगे। वे उच्छृंखल होकर स्वयं अपनी प्रजा की लक्ष्मी, कीर्ति, स्वाधीनता आदि का हरण करेंगे और नारियों की लज्जा, सतीत्व आदि से खेलेंगे।
बछड़ों के द्वारा रथ का वहन – यह इस बात का संकेत है कि अब लोगों में युवावस्था में ही धर्म और संयम के रथ को खींचने की शक्ति पाई जाएगी।
गज पर आरूढ़ होने वाले राजपुत्रों का ऊंट के आसन पर दिखाई देना- यह इस बात का संकेत है कि अब राजपुरुष व्यवस्थित और शान्तिपूर्ण मार्गों का परित्याग करके, असन्तुलित और हिंसा से भरे मार्ग पर चलेंगे।
धूल-धूसरित रत्नों का अवलोकन – यह इस बात का संकेत है कि भविष्य में संयमरत्न के धारक, निर्ग्रन्थ तपस्वी भी एक-दूसरे की निन्दा और अवर्णवाद करेंगे।
काले हाथियों का द्वन्द्व-युद्ध – यह इस बात का संकेत है कि गरजते हुए मेघ सानुपातिक जलवृष्टि अब प्रायः नहीं करेंगे। यत्र-तत्र अवर्षण से प्रजा को कष्ट होगा।
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