श्रीफल जैन न्यूज़ आपके लिए लाया है जैन संस्कार क्रियाओं का अर्थ और उन्हें पूरा करने के विधि-विधान। जैन शास्त्र कहते है कि जैन संस्कृति से जुड़ी 53 क्रियाओं के विधिवत पालन से श्रावक, परमत्व को प्राप्त हो सकता है। पहली कड़ियों में हमने गर्भान्वय की 53 क्रियाओं के लक्षण में से 8 लक्षण तक के बारे में बात की थी। आज की कड़ी में अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी की वाणी पर आधारित लेख में विस्तार से जानिए, निषद्या क्रिया, अन्नप्राशन क्रिया, व्युष्टि क्रिया, केशवाप क्रिया, लिपि संख्यान क्रिया, उपनीति क्रिया के बारे में….
9.निषद्या-क्रिया
बहिर्यान के बाद सिद्ध भगवान की पूजा विधिपूर्वक बालक को किसी बिछाये हुए शुद्ध आसन पर बिठाना चाहिए।
10.अन्नप्राशन-क्रिया
जन्म के 7/8 माह के बाद पूजन विधि पूर्वक बालक को अन्न खिलाएं।
11.व्युष्टि-क्रिया
जन्म के एक वर्ष बाद जिनेंद्र पूजन विधि, दान व बंधुवर्ग निमंत्रणादि कार्य करना चाहिए। इसे वर्षवर्धन या वर्षगाँठ भी कहते हैं।
12.केशवाप-क्रिया
इसके बाद किसी शुभ दिन, पूजा विधिपूर्वक बालक के सिर पर उस्तरा फिरवाना अर्थात मुंडन करना, व उसे आशीर्वाद देना आदि कार्य किया जाता है। बालक द्वारा गुरु को नमस्कार कराया जाता है।
13.लिपि-संख्यान-क्रिया
पाँचवें वर्ष अध्ययन के लिए पूजा विधिपूर्वक किसी योग्य गृहस्थी गुरु के पास छोड़ना।
14. उपनीति क्रिया
आठवें वर्ष यज्ञोपवीत धारण कराते समय, केशों का मुंडन तथा पूजा विधिपूर्वक योग्य व्रत ग्रहण कराके बालक की कमर में मूंज की रस्सी बाँधनी चाहिए। यज्ञोपवीत धारण करके, सफेद धोती पहनकर, सिर पर चोटी रखने वाला वह बालक माता आदि के द्वार पर जाकर भिक्षा माँगे। भिक्षा में आगम द्रव्य से पहले भगवान की पूजा करे, फिर शेष बचे अन्न को स्वयं खाए। अब यह बालक ब्रह्मचारी कहलाने लगता है।
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