- भोगों से उदासीनता पर मोक्ष का मार्ग प्रशस्तः मुनि श्री सहज सागर जी
- समोसरण मंदिर कंचन बाग में प्रवचन
न्यूज़ सौजन्य- राजेश जैन दद्दू
इंदौर। सत्य को जानकर भी जीव सत्य का पालन नहीं कर पा रहा है और सत्य से अनजान बना हुआ है। यह जानते हुए भी कि जैनधर्म में रात्रि भोजन करना मांस तुल्य और जल ग्रहण करना रक्त के समान है, फिर भी जैन धर्मावलंबी इसका त्याग नहीं कर पा रहे हैं।
यह उद्गार मुनि श्री आदित्य सागर जी महाराज ने समोसरण मंदिर कंचन बाग में प्रवचन देते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ज्ञानी जीव दूसरों की विपत्ति (दुख) देखकर अपनी रक्षा कर लेता है लेकिन मूढ़ मति (अज्ञानी) जीव ऐसा नहीं करता है। वह पर-चिंता के कारण दूसरे के दुख में सुख ढूंढता है जबकि सुख है नहीं। पर चिंता दुख का कारण है पर की देखा- देखी करके व्यक्ति दुखी होता है। अतः अपने स्वत्व का चिंतन करो और अपने में जियो।
मुनि श्री सहज सागर जी ने भी प्रवचन देते हुए कहा कि पानी बरसना अमृत तुल्य है लेकिन अतिवृष्टि विनाश का कारण है। इसलिए जीवन में किसी भी कार्य में अति नहीं करना चाहिए। आपने कहा कि संसार, शरीर और भोगों से उदासीनता
आने से हमारा मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है। धर्मसभा में रश्मि वेद, कैलाश वेद, राजेश जैन दद्दू, गौतम जैन एवं कमलेश जैन आदि समाज श्रेष्ठी उपस्थित थे। धर्म सभा का संचालन हंसमुख गांधी ने किया।