राजस्थान के जैन संत: व्यक्तित्व और कृतित्व के माध्यम से संतों और साधुओं के जीवन और उनके काल में हुए जैन धर्म के प्रति जनजागरण के बारे में जान रहे हैं। ऐसे अनगिनत संत हैं। जिन्होंने बहुत बेहतर धर्म जागरण किया और साहित्य सेवा भी की। उनके बारे में जाने। जैन धर्म के राजस्थान के दिगंबर जैन संतों पर एक विशेष शृंखला में 30वीं कड़ी में श्रीफल जैन न्यूज के उप संपादक प्रीतम लखवाल का ब्रह्म गणेश के बारे में पढ़िए विशेष लेख…..
इंदौर। राजस्थान के जैन संतों के बारे में अब तक एक से बढ़कर एक संतों के बारे में जाना है। अब जानते हैं ब्रह्म गणेश के बारे में। इन्होंने अपने काल के संतों के साथ अपने गुरुओं के बारे में बहुत कुछ लिखा है। ब्रह्म गणेश ने तीन संतों भट्टारक रत्नकीर्ति, भट्टारक कुमुदचंद, भट्टारक अभयचंद का काल देखा था। ये तीनों ही भट्टारकों के प्रिय शिष्य थे। इसलिए इन्होंने भी इन भट्टारकों के स्तवन के रूप में पर्याप्त गीत लिखे हैं। वास्तव में ब्रह्म गणेश जैसे साहित्यिकों ने इतिहास को नया मोड़ दिया और उनमें अपने गुरुजनों का परिचय प्रस्तुत करके एक बड़ी भारी कमी को पूरा किया। ब्रह्म गणेश के अब तक 20 गीत एवं पद प्राप्त हो चुके हैं। सभी पद एवं गीत इन्हीं संतों की प्रशंसा में लिखे गए हैं। दो पद तेजाबाई की प्रशंसा में भी लिखे हैं। तेजाबाई उस समय की अच्छी श्राविका थी और इन संतों का संघ निकालने में विशेष सहायता देती थी।
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