राजस्थान के जैन संतों की श्रंखला में अनेकोनेक संत हुए, लेकिन अपने गुरु के प्रति निष्ठावान शिष्य बिरले ही नजर आए। जिन्होंने जन साधारण के लिए साहित्य तो रचा,लेकिन अपने गुरु की वंदना के पदों को अधिक महत्ता प्रदान की। ऐसे ही जैन संत जिन्होंने राजस्थान में साहित्य के क्षेत्र में कीर्ति स्तंभ स्थापित किया है। वह हैं ब्रह्मचारी श्री जयसागर जी। जैन धर्म के राजस्थान के दिगंबर जैन संतों पर एक विशेष शृंखला में 14वीं कड़ी में श्रीफल जैन न्यूज के उप संपादक प्रीतम लखवाल का ब्रह्मचारी श्री जयसागर जी के बारे में पढ़िए विशेष लेख…..
इंदौर। जयसागर भट्टारक रत्नकीर्ति के प्रमुख शिष्यों में से थे। ये ब्रह्मचारी थे और जीवन भर इसी पद पर रहते हुए अपना आत्म विकास करते रहे थे। भट्टारक रत्नकीर्ति जिनका परिचय पूर्व में दिया जा चुका है। साहित्य के अनन्य उपासक थे। इसलिए जयसागर भी अपने गुरु के सामन ही साहित्य आराधना में लग गए। उस समय हिन्दी का विकास हो रहा था। विद्वानों और जन साधारण की रुचि हिन्दी ग्रंथों को पढ़ने में अधिक हो रही थी। इसलिए जय सागर जी ने अपना क्षेत्र हिन्दी रचनाओं तक ही सीमित रखा। जयसागर जी ने अपनी सभी रचनाओं में भट्टारक रत्नकीर्ति का उल्लेख किया है।
गीतों में कवि ने रत्नकीर्ति के जीवन की प्रमुख घटनाओं को छंदोबद्ध
रत्नकीर्ति के बाद होने वाले भट्टारक कुमुदचंद्र का कहीं भी नामोल्लेख नहीं किया है। इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि इनका भट्टारक रत्नकीर्ति के काल में ही समाधिमरण हो गया था। रत्नकीर्ति संवत 1656 तक भट्टारक रहे। इसलिए ब्रह्मचारी श्री जयसागर का समय संवत 1580 से 1655 तक का माना जा सकता है। घोघा नगर इनका प्रमुख साहित्यिक केंद्र था। ब्रह्मचारी श्री जय सागर की अब तक जितनी रचनाओं की खोज हो सकी है। उनमें नेमिनाथ गीत, जसोधर गीत, चुनड़ी गीत, पंचकल्याणक गीत, संकट हर पार्श्वजिन गीत, भट्टारक रत्नकीर्ति पूजा गीत, क्षेत्रपाल गीत, संघपति मल्लिदास नी गीत, विभिन्न पद एवं गीत तथा शीतलनाथ नी विनती शामिल हैं। जयसागर जी लघु कृतियां लिखने में विशेष रुचि रखते थे। इनके गुरु रत्नकीर्ति भी रघु रचनाओं को ही अधिक पसंद करते थे। इसलिए इन्होंने भी उसी मार्ग का अनुसरण किया। ब्रह्म श्री जयसागर रत्नकीर्ति के कट्टर समर्थक थे। उनके प्रिय शिष्य तो थे ही, लेकिन एक रूप में उनके प्रचारक भी थे। इन्होंने रत्नकीर्ति के जीवन के बारे में कई गीत लिखे और उनका जनता में प्रचार किया। रत्नकीर्ति जहां भी कहीं जाते उनके अनुयायी जयसागर द्वारा लिखे गीतों को गाते। इसके अलावा इन गीतों में कवि ने रत्नकीर्ति के जीवन की प्रमुख घटनाओं को छंदोबद्ध कर दिया है। यह सभी गीत सरल भाषा में लिखे हुए हैं, जो गुजराती से बहुत दूर एवचं राजस्थानी के अधिक निकट हैं। इस प्रकार जय सागर जी ने जीवन पर्यन्त साहित्य के विकास में जो अपना अपूर्व योगदान दिया है। वह हमेशा याद रखा जाएगा।
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