इंदौर में ससंघ विराजमान मुनिश्री आदित्य सागरजी मुनिराज प्रवचन की दुनिया में एक ऐसा नाम हैं, जिनकी लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है। अखबारों मे हो या फिर सोशल मीडिया का प्लेटफार्म, हर जगह मुनिश्री का जिक्र होता हुआ मिल जाएगा। सोशल मीडिया पर उन्हें फॉलो करने वाले भक्तों की संख्या लाखों में पहुंची है। पढ़िए इंदौर से अभिषेक अशोक पाटील की पूरी खबर….
इंदौर। श्री विशुद्ध सागरजी महाराज के शिष्य मुनिश्री आदित्य सागरजी मुनिराज ससंघ इंदौर में विराजमान है। प्रवचन की दुनिया में मुनि श्री आदित्य सागरजी का एक ऐसा नाम हैं, जिनकी लोकप्रियता दिनों-दिन बढ़ती ही जा रही है। अखबारों मे हो या फिर सोशल मीडिया का प्लेटफार्म, हर जगह मुनिश्री आदित्य सागरजी का जिक्र होता हुआ मिल जाएगा। आदित्य सागरजी के प्रवचन में जहां सैकड़ों-हजारों श्रावक-श्राविकाओं की भीड़ होती है। तो वहीं सोशल मीडिया पर उन्हें फॉलो करने वाले भक्तों की संख्या लाखों में पहुंची है। कारण उनमें वह सभी योग्यता है, जो एक मोटिवेशनल प्रवचनकार को आम लोगों के बीच में लोकप्रिय बनाती है।
जो प्राप्त है वो पर्याप्त है
आदित्य सागरजी बताते है कि गलती और गलतफहमी दोनों ही हानिकारक हैं, गलती का दर्द कुछ ही देर तक रहता है, गलतफहमी का दर्द जिंदगी भर रहता है। सही बात है शीशा गलती से टूटता है, रिश्ता गलतफहमी से टूटता है। एक बेहतरीन जिंदगी के लिये यह स्वीकारना जरुरी हैं कि जो हमारे पास है वो ही सबसे बेहतर है। जो प्राप्त है वो पर्याप्त है। इन दो शब्दों में सुख बे हिसाब है। सही बात है, हमें मिलता तो बहुत कुछ है, मगर हम गिनती उसी कि करते हैं, जो हमें हासिल नहीं हुआ है।
प्रतिकूलताओं में जीने की आदत डालिए
दिगम्बर जैन मुनि आदित्य सागरजी ने कहा कि जीवन में दुख-दर्द हमेशा रहने वाले हैं, यही संसार का स्वरूप है, संसार का स्वभाव है। हमें प्रतिकूलताओं को सहज व समतापूर्वक ग्रहण करते हुए जीने की आदत डालनी चाहिए। संसार-वृत्ति के त्याग के बिना सच्चा सुख नहीं मिलता। जो बात हमें अपने स्वयं के लिए खराब लगती है, वही व्यवहार हमें दूसरों के लिए उपयोग में नहीं लेना चाहिए।
समय का सदुपयोग करना जरूरी
मुनि आदित्य सागर महाराज ने कहा कि मनुष्य जन्म धर्म करने के लिए श्रेष्ठ जीवन है। ऐसे में सत्कार्य ना करने वाले मूर्ख हैं। समय अनमोल है, अतः इसका सदुपयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि माता-पिता व गुरू की छत्रछाया बहुत पुण्य से मिलती है। वे सदैव भला सोचते हैं। हमें कषायों की मन्दता रखते हुए, पापों का एकदेश त्याग कर, गृहस्थावस्था में अणुव्रतों को अवश्य धारण करना चाहिए और भविष्य में महाव्रतों को धारण कर शुद्धोपयोग की भावना रखनी चाहिए। उन्होनें कहा कि साधुओं की वैयावृत्ति करना व उनकी सेवा-स्थिति करना तुरंत फलदाई होता है। इससे संसार के सभी दुखों का नाश होता है।
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