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नवें तीर्थंकर पुष्पदंतनाथ भगवान का गर्भकल्याणक 22 फरवरी : गर्भकल्याणक तिथि से आता है फाल्गुनी कृष्ण नवमी को


जैन धर्म की समृद्ध धार्मिक विरासत में नौवें तीर्थंकर भगवान पुष्पदंतनाथ जी का गर्भ कल्याणक फाल्गुन कृष्ण नवमीं के दिन संपूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 22 फरवरी को आ रही है। इस दिन दिगंबर जैन मंदिरों में अभिषेक, शांतिधारा सहित अन्य पूजन विधानादि किए जाएंगे। आइए भगवान श्री पुष्पदंतनाथ जी के बारे में श्रीफल जैन न्यूज की अपनी विशेष श्रंखला में पौराणिक जानकारी से अवगत होते हैं। इसमें संयोजन और संकलन उप संपादक प्रीतम लखवाल का है। 


इंदौर। सुविधिनाथ, जो पुष्पदंतनाथ के नाम से भी जाने जाते हैं। वर्तमान काल के 9वें तीर्थंकर हैं। इनका चिन्ह ‘मगर’ हैं। किसी दिन भूतहित जिनराज की वंदना करके धर्माेपदेश सुनकर विरक्तमना राजा दीक्षित हो गए। ग्यारह अंगरूपी समुद्र का पारगामी होकर सोलह कारण भावनाओं से तीर्थंकर प्रकृति का बंध कर लिया और समाधिमरण के प्रभाव से प्राणांत स्वर्ग का इंद्र हो गए। पंचकल्याणक वैभव-इस जंबूद्वीप के भरत क्षेत्र की काकंदी नगरी में इक्ष्वाकु वंशीय काश्यप गोत्रीय सुग्रीव नाम का क्षत्रिय राजा था, उनकी जयरामा नाम की पट्टरानी थी। उन्होंने फाल्गुन कृष्ण नवमी के दिन ‘प्राणतेंद्र’ को गर्भ में धारण किया और मार्गशीर्ष शुक्ला प्रतिपदा के दिन पुत्र को जन्म दिया। इंद्र ने बालक का नाम ‘पुष्पदंत’ रखा। पुष्पदंतनाथ राज्य करते हुए एक दिन उल्कापात से विरक्ति को प्राप्त हुए। तभी लौकांतिक देवों से स्तुत्य भगवान इंद्र द्वारा लाई गई ‘सूर्यप्रभा’ पालकी में बैठकर मगसिर सुदी प्रतिपदा को दीक्षित हुए। शैलपुर नगर के पुष्पमित्र राजा ने भगवान को प्रथम आहार दान दिया था।

केवल ज्ञान की प्राप्ति

छद्मस्थ अवस्था के चार वर्ष के बाद नाग वृक्ष के नीचे विराजमान भगवान को कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन केवल ज्ञान हुआ। आर्यदेश में विहार कर धर्माेपदेश देते हुए भगवान अंत में सम्मेदशिखर पहुंचकर भाद्रपद शुक्ला अष्टमी के दिन सर्व कर्म से मुक्ति को प्राप्त हो गए।

ऋषभनाथ भगवान की परंपरा को पुनर्स्थापित की

उपलब्ध जानकारी के अनुसार भगवान पुष्पदंत जी की जन्मतिथि विक्रम संवत के मार्गशीर्ष कृष्ण मास की पंचमी तिथि थी। नौवें तीर्थंकर पुष्पदंत भगवान ने ऋषभनाथ भगवान द्वारा शुरू की गई परंपरा में चार-भाग वाले संघ को फिर से स्थापित किया था। पुष्पदंत प्रभु मगरमच्छ प्रतीक, मल्ली वृक्ष, अजिता यक्ष और महाकाली (दिग्गज) और सुतारका (श्वेत) यक्षी से जुड़े हैं।

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