समाचार

भगवान विमलनाथ जी का जन्म और तप कल्याणकः देश के विभिन्न तीर्थ स्थलों पर भगवान विमलनाथ जी के हैं अदभुत जिनालय


भगवान विमलनाथ जी का 2 फरवरी को जन्म और तप कल्याणक है। जब भगवान विमलनाथ जी का जन्म हुआ तब माघ महीने के शुल्क पक्ष की तृतीया तिथि थी। इस बार इस तिथि पर यह सुयोग बना है कि एक ओर भगवान विमलनाथ जी का जन्म और तप कल्याणक मनाया जाएगा तो दूसरी ओर वाग्देवी, विद्या की देवी सरस्वती का प्रकटोत्सव भी मनाया जाएगा। यह अद्भुत संयोग तो है ही इसी दिन से दशलक्षण व्रत भी आरंभ हो रहे हैं। भगवान विमलनाथ जी जैन धर्म के तेरहवें तीर्थंकर है और जैन धर्म को सही मार्ग पर ले जाने में उनकी देशनाएं जैन जन-जन तक बहुत गहराई से पहुंची है। श्रीफल जैन न्यूज की विशेष श्रृंखला के तहत भगवान विमलनाथ जी के जन्म और तप कल्याणक पर यह रिपोर्ट उप संपादक प्रीतम लखवाल की कलम से…


इंदौर। भगवान विमलनाथ जी का 2 फरवरी को जन्म और तप कल्याणक है। जब भगवान विमलनाथ जी का जन्म हुआ, तब माघ महीने के शुल्क पक्ष की तृतीया तिथि थी। भगवान श्री विमलनाथ वर्तमान युग अवसरपिणीद्ध के तेरहवें तीर्थंकर थे। वे सिद्ध बन गए, एक मुक्त आत्मा जिसने अपने सभी कर्मों को नष्ट कर दिया है। भगवान श्री विमलनाथ का जन्म इक्ष्वाकु वंश के काम्पिल्य में राजा कृतवर्मा और रानी श्यामादेवी के यहां हुआ था। उनकी जन्म तिथि भारतीय कैलेंडर के माघ शुक्ल महीने की तीसरी तिथि है। बारहवें तीर्थंकर को मोक्ष पधारे हुए जब बहुत काल व्यतीत हो चुका था। तब माघ शुक्ल तृतीया के दिन तेरहवें तीर्थंकर श्री विमलनाथ जी का जन्म हुआ। कम्पिलपुर के राजा कृतवर्मा एवम उनकी महारानी श्यामादेवी को प्रभु के जनक-जननी होने का परम-सौभाग्य प्राप्त हुआ।

राजपद का दायित्व भी वहन किया

विमलनाथ जी ने यौवन में पदार्पण किया। माता-पिता ने अनेक सुंदर राजकन्याओं से उनका पाणिग्रहण कराया। पिता के बाद उन्होंने राजपद का दायित्व भी वहन किया। अपने विमल शासनकाल में विमलनाथ का विमल सुयश चतुर्दिक प्रशस्त हुआ।

भगवान विमलनाथ जी का तप कल्याणक

माघ शुक्ल चतुर्थी के दिन महाराज विमलनाथ मुनि विमलनाथ बने अर्थात प्रव्रजित हुए। तप और ध्यान की साधना में निमग्न रहते हुए दो वर्ष बाद पौष शुक्ल षष्ठी के दिन प्रभु केवली बने। तीर्थ की रचनाकर तीर्थंकर पद को उपलब्ध हुए। मंदर नामक मुनि प्रभु के ज्ये्ष्ठ शिष्य और प्रमुख गणधर थे। उनके अतिरिक्त चौपन गणधर और भी थे। धर्म-परिवार में 68 हजार साधु ,एक लाख 800 सौ साध्वियां ,दो लाख 8 हजार श्रावक एवं चार लाख 24 हजार श्राविकाए थीं। तृतीय बलदेव भद्र एवं स्वयंभू नामक वासुदेव प्रभु के अनन्य भक्त थे। आषाढ कृष्णा सप्तमी के दिन सम्मेद शिखर पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया।

भगवान के चिन्ह का महत्वः शूकर 

भगवान विमलनाथ के चरणों में शूकर का प्रतीक पाया जाता है। शूकर प्रायः मलिनता का प्रतीक है। ऐसे मलिन वृत्ति वाला पशु विमलनाथ भगवान के चरणों में जाकर आश्रय लेता है तो वह शुकर ‘वराह‘ कहलाने लगता है। एक समय ऐसा आता है, जब भगवान विष्णु भी वराह का रूप धारण कर दुष्ट राक्षसों का संहार करने लगते हैं। यह प्रभु का रूप स्वयं विष्णु धारण करते हैं। शूकर के जीवन से हमें दृढता एवं सहिष्णुता का गुण ग्रहण करना चाहिए।

 

शुकल माघ तुरी तिथि जानिये, जनम मंगल तादिन मानिये।

हरि तबै गिरिराज विषै जजे, हम समर्चत आनन्द को सजे।

ॐ ह्रीं माघशुक्लाचतुर्थ्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीविमल अर्घ्यं नि। .

 

तप धरे सित माघ तुरी भली, निज सुधातम ध्यावत हैं रली।

हरि फनेश नरेश जजें तहां, हम जजें नित आनन्द सों इहां।

ॐ ह्रीं माघशुक्लाचतुर्थ्यां तपोमंगल प्राप्ताय श्रीविमल0 अर्घ्यं नि।

-ःविद्या वाचस्पति डॉ. अरविंद प्रेमचंद जैन, संरक्षक, शाकाहार परिषद्

भगवान के प्रसिद्ध मंदिर

काम्पिल्य जैन मंदिर, काम्पिल्य, उत्तरप्रदेश, ये 1800 साल पुराने हैं। जिनमें भगवान विमलनाथ की मूर्ति लगभग 2600 साल पुरानी है। दुबई में जैन देरासर, महाराष्ट्र धुले में श्री विमलनाथ भगवान तीर्थ स्थित हैं।

स्रोतः-इंटरनेट और जैन गजेट

आप को यह कंटेंट कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
+1
3
+1
0
+1
0

About the author

Shreephal Jain News

Add Comment

Click here to post a comment

× श्रीफल ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें