राजस्थान के संत समाचार

राजस्थान के जैन संत 40 भट्टारक सकलभूषणजी ने अपने गुरु की रचनाओं में किया था सहयोग: जयपुर के आमेर शास्त्र भंडार में हैं रचनाएं संग्रहित 


राजस्थान के जैन संतों ने राजस्थान की धरती पर रहकर साहित्य को इतना समृद्ध कर दिया है कि उनकी रचनाएं आज भी बहुत प्रभावी लगती हैं। भट्टारक सकलभूषण ने संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी के अलावा गुजराती में भी अपनी कलम का जादू बिखेरा है। जैन धर्म के राजस्थान के दिगंबर जैन संतों पर एक विशेष शृंखला में 40वीं कड़ी में श्रीफल जैन न्यूज के उप संपादक प्रीतम लखवाल का भट्टारक सकलभूषणजी के बारे में पढ़िए विशेष लेख…..


इंदौर। राजस्थान के जैन संतों ने राजस्थान की धरती पर रहकर साहित्य को इतना समृद्ध कर दिया है कि उनकी रचनाएं आज भी बहुत प्रभावी लगती हैं। भट्टारक सकलभूषण ने संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी के अलावा गुजराती में भी अपनी कलम चलाई और जन-जन में साहित्यिक और सांस्कृतिक चेतना का संचार किया। सकलभूषण भट्टारक शुभचंद्र के शिष्य थे तथा भट्टारक सुमति कीर्ति के गुरु भ्राता थे। इन्होंने संवत 1627 में उपदेश रत्नमाला की रचना की थी। जो संस्कृत की अच्छी रचना मानी जाती है। भट्टारक शुभचंद्र को इन्होंने पांडव पुराण एवं करकंडु चरित्र की रचना में पूर्ण सहयोग दिया था। जिसका शुभचंद ने इन ग्रंथों में वर्णन किया है। अभी तक इन्होंने हिन्दी में क्या-क्या रचनाएं लिखी थी। इसका कोई उल्लेख नहीं मिला था, लेकिन आमेर शास्त्र भंडार, जयपुर के एक गुटके में इनकी लघुरचना सुदर्शन गीत, नारी गीत, एक पद उपलब्ध हुए हैं। सुदर्शन गीत में सेठ सुदर्शन के चरित्र की प्रशंसा की गई है। नारी गीत में स्त्री जाति से संसार में विशेष अनुराग नहीं करने का परामर्श दिया गया है। सकल भूषण की भाषा पर गुजराती का प्रभाव है। रचनाएं अच्छी हैं एवं प्रथम बार हिन्दी जगत के सामने आ रही हैं।

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