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श्री आदिनाथ का निर्वाँण महा महोत्सव मनाया गया: भक्ति की महत्ता बताई श्रमण मुनि विशल्यसागर जी ने


सारांश

झारखण्ड में राजकीय अतिथि श्रमण मुनि विशल्यसागर जी गुरुदेव के सान्निध्य में भगवान आदिनाथ का निर्वाण कल्याणक मनाया गया। श्री1008 भक्तामर महामण्डल विधान हुआ। पढ़िए पूरी रिपोर्ट राज कुमार अजमेरा की


रांची। प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का निर्वाण कल्याणक शुक्रवार को श्रद्धा व उल्लास के साथ जैन मंदिरों में मनाया गया। अभिषेक, शान्तिधारा व पूजन के कार्यक्रम हुए। बड़ी संख्या में जैन बंधु सम्मिलित हुए। झारखंड सरकार के राजकीय अतिथि श्रमण मुनि विशल्यसागर जी गुरुदेव के सान्निध्य एवं आशीर्वाद से यह आयोजन सम्पन्न हुआ। श्री 1008 भक्तामर महामण्डल विधान भी हुआ।

भक्ति कराती है आत्मा से मिलन
इस मौके पर पूज्य गुरुदेव की मंगल वाणी भी सुनने का सुअवसर प्राप्त हुआ। पूज्य गुरुदेव ने कहा कि प्रभु की भक्ति हमें हमेशा करते रहना चाहिए। नये वर्ष की शुरुआत में हम हमारे प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ का निर्वाण उत्सव मना रहे हैं। प्रभुभक्ति हमें निरन्तर करते रहनी चाहिए क्योंकि प्रभु की भक्ति तीर्थंकर प्रकृति में कारण है। हम सोलह कारण भावना पढ़ते हैं। सबसे ज्यादा उसमें भक्ति की ही बात कही गई है। आचार्य भक्ति, प्रवचन भक्ति, श्रुत भक्ति आदि हमें आत्मा के पास ले जाती है, आत्मा से मिलन कराती है। जन्म – जन्म के संचित पाप नष्ट करने में भक्ति प्रमुख कारण है। परमात्मा की भक्ति परमत्मा के पास ले जाती है। ऐसे में प्रभु की भक्ति निःकांक्षित भाव से करनी चाहिए तभी वह भक्ति शिव से शिवालय तक की यात्रा कराती है।

48 दीपकों से महाअर्चना
पूज्य गुरुदेव विशल्यसागर जी ने आगे कहा कि आज भगवान का मोक्ष कल्याणक दिवस हम सभी बड़े ही आनंद और उल्लास के साथ मना रहे हैं। इसी के अन्तर्गत श्रावक, श्राविकाओं के द्वारा 48 दीपकों से महाअर्चना ( आरती ) भी की गई। सभी कार्यक्रम अलका दीदी ओर भारती दीदी के सान्निध्य में हुए।

 

 

 

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