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नमोस्तु पर भरोसा करना हमारी सबसे बड़ी सिद्धि : मुनिश्री सुधासागर जी की धर्मसभ में ज्ञान और कर्म की सीख


मुनि सुधासागर जी महाराज बहोरीबंद अतिशय क्षेत्र में धर्मसभा को संबोधित कर रहे हैं। उन्होंने कर्म, ज्ञान और धर्म की राह पर चलने का संदेश दिया। बहोरीबंद से पढ़िए राजीव सिंघई की यह खबर…


बहोरीबंद। मुनि श्री सुधासागर जी ने बहोरीबंद अतिशय क्षेत्र में विराजित होकर धर्मसभा में कहा कि नियत धारा में हमें नहीं बहना है। हमारी खुद की जिंदगी को हमें नियत करना है क्योंकि हम कर्म चेतना वाले है, हम अवचेतन दशा में नहीं है, आज वह ऐसी कर्म चेतना अपने जीवन को ज्ञान चेतना की तरफ ले जाएगी, जहाँ पर करने को कुछ नहीं होगा। नियत उस समय के लिए है, जब कार्य पूरा हो जाये, जब पुरुषार्थ थक जाये। नियत सामने आना चाहिए लेकिन नियत का अर्थ है कि जब हमारे सारे पुरुषार्थ थक जाए, जब हमारे परिणाम आकुल व्याकुल हो जाए, जब हम किंकिर्तव्यविमूढ़ हो जायें, उस समय नियतवाद शान्ति के लिए कहना पड़ता है कि ऐसा ही होना था, ऐसा हो गया, ये मात्र मरहम पट्टी है, सिद्धान्त नहीं। नियत्ता इस दुनिया का कोई नहीं है, भगवान के हाथ मे भी दुनिया मे कुछ भी नहीं है, वे किसी चीज को नियत नहीं कर पाते, इसलिए जैनाचार्यो ने एक खोज की- कर्म चेतना की।

हमारी तुम्हारी जिंदगी कर्म चेतना पर आश्रित है

कर्मफल चेतना ज्यादा कठिन नहीं है, कोई पुरुषार्थ नहीं करना, आप कुछ भी नहीं करेंगे तो भी कर्म आपको फल देगा। ज्ञान चेतना में जीने वाले लोग सिद्धालय में बैठे हैं, उनकों कुछ नहीं। हमारी तुम्हारी जिंदगी कर्म चेतना पर आश्रित है, कर्म चेतना कभी नियत नहीं होती। कर्म चेतना कभी किस्मत का आलंबन नहीं लेती, किस्मत कर्म चेतना वाले का आलंबन लेती है। कर्म चेतना वाला निमित्त के अनुसार नहीं चलता, निमित्त को अपने अनुसार चलाता है। किस्मत के अनुसार अपनी जिंदगी नहीं ढालता, किस्मत को अपने अनुसार बनाता है। दो प्रकार की स्थितियाँ जीते हैं लोग- एक निमित्त के आधीन होकर या निमित्त की कठपुतली बनकर जीते है लोग, वो कर्म भी हो सकता है, नौ कर्म भी। अच्छा निमित्त मिले तो आप अच्छे हो जाते हैं और बुरा निमित्त मिले तो बुरे।

दुनिया की कोई ताकत तुम्हारा अमंगल नहीं कर सकती

जब जब हमें फीलिंग हो कि हमारा कर्म ठीक नहीं है, हमें कर्म के अनुसार जिंदगी जीना पड़ रही है, समझ लेना आप औदायिक भाव में चले गए, आपकी जिंदगी का सबसे बड़ा अपशगुन है ये। तुम बहुत कार्य करने में समर्थ हो लेकिन जैसे ही तुम्हारे मन में ये भाव आ जाए कि होना तो वही है जो निश्चित है, समझ लेना उस समय तुम्हारी शक्ति इतनी क्षय हो जाती है, जैसी किसी गाड़ी में से हवा निकल जाती है। होगा तो वही जो निश्चित है, किसी भी कार्य को करते समय ये परिणाम अपनी जिंदगी में मत आने देना। बस इतना सा भाव कार्य करते समय आ जाए कि वही होगा मैं जो करना चाहता हूँ, वही जियूँगा जो मैं आज जीना चाहता हूँ, वही सोचूँगा जो मैं आज सोचना चाहता हूँ, वही देखूँगा जो मैं आज देखना चाहता हूँ, यदि प्रथम क्षण में कार्य करते समय तुम्हारे अंदर ये परिणाम आ जाये, जाओ दुनिया की कोई ताकत तुम्हारा अमंगल नहीं कर सकती।

कांटों को कुचलते हुए चले जाओगे

तुमने खुद अपना मंगलाचरण कर लिया। उस प्रथम क्षण को पकड़ना, चाहे व्यापार करना, चाहे सुबह उठना। कभी सुबह उठते ही समय एकदम पहला क्षण आज वही जिंदगी होगी जो मैं जीना चाहता हूँ। आप देखना पग पग पर तुम बढ़ते जाओगे, अंधेरा दूर होता जाएगा। तुम कांटों को कुचलते हुए चले जाओगे, कोई कांटा तुम्हें रोक नहीं पाएगा क्योंकि तुम्हारी जिंदगी का सबसे बड़ा शगुन- कर्म चेतना का अर्थात अंदर से सहज भाव, हमारे पुरुषार्थ से नहीं।

ये नमोस्तु है कर्म चेतना

भगवान पर भरोसा करना हमारा सबसे बड़ा अमंगल है और नमोस्तु पर भरोसा करना हमारी सबसे बड़ी सिद्धि है। पूज्य समन्तभद्र महाराज को भगवान पर भरोसा नहीं था, भगवान पर भरोसा होता तो सात भगवान की स्तुति कर चुके, एक भगवान नहीं आए। तब समन्तभद्र भगवान ने जैसे ही चन्द्रप्रभ भगवान की स्तुति करते हुए नमोस्तु किया, वो पाषाण फटा और चन्द्रप्रभ भगवान प्रकट हो गए, ये नमोस्तु है कर्म चेतना। भगवान व किस्मत के भरोसे बैठना, अपने जीवन का नाश करना है, तुम्हें अपने नमोस्तु पर कितना विश्वास है, यदि तुम्हारा नमोस्तु चोखा है तो झुकाओ, मस्तक तुम जो चाहोगे, वही होगा। तुम्हारा काम नहीं हो रहा है इसका अर्थ है तुम्हारा नमोस्तु खोटा है।

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