इंदौर। आज हमारा देश आजादी का 75वां अमृत महोत्सव मना रहा है। देश की आजादी के लिए कई लोगों ने अपनी जान गंवाई तो कई वर्षों तक जेल यातना सहते रहे। आज उन्हीं बलिदानियों के कारण हम आजाद भारत में सांसें ले रहे हैं। इस आजादी में कुछ ऐसे परिवार रहे हैं, जिनके बुजुर्गों ने आजादी की नींव रखी। उन्होंंने आजादी की लड़ाई लड़ी, वहीं आज उनके परिवार के बच्चे समाज को नई दिशा देने के लिए वैराग्य धारण कर जैन संत बन चुके हैं और समाज को सही दिशा में चलने की सीख दे रहे हैं।

अंधे कुएं से पोस्टर निकालकर लगाते और गायब हो जाते
कुबेरचंद पंचोलिया मूल रूप से सनावद के रहने वाले थे। आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उनके बेटे संजय ने बताया कि पिता चुपचाप घर से निकल जाते। क्रांतिकारियों के पोस्टर बाहर से आते थे। उन्हें लेकर आनेवाले एक अंधे कुएं में फेंक जाते थे, ताकि किसी को इस बारे में पता नहीं चले। उनके पिता चुपचाप उन्हें निकालकर लाते और फिर इस तरह से पोस्टर लगाते कि किसी को पता नहीं चले कि कौन लगा गया। इस काम में कई बार पकड़े भी गए। उनके देशसेवा के जज्बे का असर पूरे परिवार पर रहा है। उनके परिवार से आचार्य वर्धमान सागर संत बने।

बैंक से ले लिया रिटायरमेंट
स्वतंत्रता सेनानी कमलचंद जैन की बेटी अब आर्यिका देशनामति हैं। उनके बेटे सुरेश जैन ने बताया कि पिता कमलचंद जैन देश की आजादी के लिए लड़े। कई बार जेल यात्रा भी की थी। आजादी के बाद वह सामाजिक कार्यों में लग गए। उनके विचारों का असर पूरे परिवार पर नजर आता है। बहन पढ़ाई खत्म करने के बाद स्टेट बैंक इंदौर में मैनेजर की पोस्ट पर थी, नौकरी करते हुए उन्हें लगा कि संत बनकर वह समाज का ज्यादा भला कर सकती हैं। इसके चलते रिटायरमेंट लिया और वैराग्य धारण कर लिया। जो रुपए मिले, उन्हें भी समाज कल्याण में लगा दिया।

बच्चों को पढ़ाया और फिर वैराग्य
मांगीलाल पाटनी ने देश सेवा की। उन्हें आयुर्वेद का अच्छा-खासा ज्ञान था। स्वतंत्रता सेनानी के रूप में लड़ाई लड़ी, वहीं आयुर्वेद का ज्ञाता होने के नाते नि:शुल्क इलाज करते रहे। उनके तीन बेटों में सबसे बड़े विमलचंद एक लोकसेवक बने। वह जनता पार्टी के नेता के तौर पर समाजसेवा करते रहे। उनके बेटे दिनेश पाटनी ने बताया कि उनके परिवार में संत हुए चाचा पहले इंदौर के एक निजी कॉलेज में पढ़ाते थे। काफी समय तक बच्चों का मार्गदर्शन करते रहे। फिर संत बनने की ठानी और आरएल पाटनी से सुहित सागर महाराज बन गए। वह अपने अंतिम समय तक समाज को सही राह दिखाने का काम करते रहे।
दो भाइयों ने की देशसेवा
पंचोलिया परिवार में दो भाई मन्नालाल पंचोलिया और पन्नालाल पंचोलिया ने आजादी की लड़ाई में भाग लिया। उनके परिवार के सदस्य राजेश पंचोलिया ने बताया कि वह चौथी पीढ़ी से हैं। दोनों ही अमर सेनानी उनके परिवार से रहे हैं। इसका असर उनके परिवार की विचारधारा पर भी पड़ा। उनके पिता ने वैराग्य लिया और मुनि चरित्र सागर बने। उनके चचेरे भाई मुनि श्रेष्ठ सागर और फिर बेटी इस परंपरा को निभाते हुए आर्यिका महायशमति के रूप में समाज को दिशा देने में लगी हुईं हैं।

संत नहीं, लेकिन समाज सेवा में आगे
स्वतंत्रता सेनानी सुमेर चंद जटाले के बेटे सुनिल ने बताया कि उनके परिवार में सीधे तौर पर तो कई वैराग्य धारण कर संत नहीं बना, लेकिन समाजसेवा तो उनके खून में है। पिता से शिक्षा का महत्व सीखा था। वह और उनका परिवार आज भी ऐसे बच्चों की मदद करता है, जो आर्थिक तंगी के चलते पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं। उनके बेटे प्रांजल का सड़क हादसे में निधन हो गया। उसकी यादों को जिंदा रखने के लिए उसके नाम से ही यह सेवा शुरू की। सबसे पहले यह तय कर लिया जाता है कि वह बच्चा पढऩा चाहता है या नहीं, ताकि योग्य बच्चे को मदद मिल सके। वह भले ही किसी भी जाति या धर्म का क्यों न हो। इसके बाद उसकी पढ़ाई का सारा खर्च चेक माध्यम से उसे पढ़ाने वाली संस्था तक पहुंचा दिया जाता है।