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अरिट्टापट्टी जैन गुहालय, जैव-विविधता और प्राकृतिक नैसर्गिक सौंदर्य पर मंडराता खतरा : सोशल मीडिया पर टंगस्टन खनन का मामला सुर्खियों में


तमिलनाडु के मदुरै जिले से लगभग 17-18 किमी दूरी पर स्थित है अद्भुत नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर, आध्यात्मिक शांति से परिपूर्ण, जैन संतों के तपोबल से उत्पन्न असीम ऊर्जा शक्ति को अपने में समाहित किए हुए यह क्षेत्र जिसे वर्ष 2002 के जैविक विविधता अधिनियम के तहत अधिसूचित किया गया था। यह अनोखा क्षेत्र इन दिनों सामाचार-पत्र, पत्रिकाओं, सोशल मीडिया पर टंगस्टन खनन के मामले में सुर्खियों में है। पढ़िए ओम पाटोदी की एक रिपोर्ट…


इंदौर। तमिलनाडु के मदुरै जिले से लगभग 17-18 किमी दूरी पर स्थित है अद्भुत नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर, आध्यात्मिक शांति से परिपूर्ण, जैन संतों के तपोबल से उत्पन्न असीम ऊर्जा शक्ति को अपने में समाहित किए हुए यह क्षेत्र जिसे वर्ष 2002 के जैविक विविधता अधिनियम के तहत अधिसूचित किया गया था। यह भारत के 19 जैव विविधता विरासत स्थलों में से एक है और 250 से अधिक पक्षी प्रजातियों का घर है। जिसे अरिट्टापट्टी के नाम से जाना जाता है। यह अनोखा क्षेत्र इन दिनों सामाचार-पत्र, पत्रिकाओं, सोशल मीडिया पर टंगस्टन खनन के मामले में सुर्खियों में है।

यूं तो देश में खनिज, खनन के मामले कई जगह विवादास्पद रहे हैं कहीं अनाधिकृत खनन समस्या बनता है तो कहीं अधिकृत खनन। तमिलनाडु में खनन की वजह से अथवा लापरवाही की वजह से कई ऐतिहासिक महत्त्व की संरचनाएं प्रभावित हुईं हैं। अरिट्टापट्टी में टंगस्टन खनन का विवाद गहरा रहा है जो हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रति लापरवाही का ही प्रदर्शित कर रहा है। इसके विरोध में वहां के रहवासियों के विरोध प्रदर्शन को अब जननायकों के साथ देश के सांस्कृतिक विरासत रक्षक धर्म और समाज का साथ मिल रहा है।


अरिट्टापट्टी एक अत्यंत प्राचीन और ऐतिहासिक क्षैत्र है
जानकारी देते हुए वर्द्धमानपुर शोध संस्थान के ओम पाटोदी और स्वप्निल जैन ने बताया कि अरिट्टापट्टी एक अत्यंत प्राचीन और ऐतिहासिक क्षैत्र है। इसका नाम श्री कृष्ण के चचेरे भाई नेम कुंवर और जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ जी के प्राकृत नाम अरिष्ट नेमी से अरिट्टापट्टी पड़ा। यहां पर नेमीनाथ स्वामी की अति प्राचीन प्रतिमा उत्कीर्ण है। यदि यहां ख़ोज की जाएं तो यहां पर महाभारत काल के प्रमाण मिले तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि, पांडवों ने वनवास के दौरान कई निर्जन वनों में भ्रमण किया था। इस क्षेत्र में पहाड़ी एवं गुफाओं में सैकड़ों तीर्थंकर प्रतिमाएं उत्कीर्ण है और प्राचीन शिलालेख मौजूद हैं। यहां कई हिन्दू मंदिर भी हैं। टंगस्टन खनन के कारण इन अतिप्राचीन स्मारकों के साथ ही हजारों पशु-पक्षियों के बसेरे नष्ट होने की सम्भावना को देखते हुए स्थानीय नेताओं के साथ विश्व जैन संगठन, सद्भावना परमार्थिक न्यास इंदौर एवं अन्य धार्मिक संगठनों ने सरकार से गुहार लगाई है कि टंगस्टन खनन की निविदा को रद्द करें एवं सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का उपक्रम करें। इस विषय की गंभीरता को देखते हुए सरकार को शीघ्र फैसला लेना चाहिए।

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