अंतरमुखी मुनि पूज्य सागर जी महाराज इस समय गुप्ती देवताओं में निवास करते हैं। यहां उनके नित्य प्रवचन हो रहे हैं, जिन्हें सुन कर डॉ. उषा पाटनी की खूबसूरत गीत रचना है। आप भी इसका आनंद लें…
इंदौर। अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज के प्रवचन से प्रभावित हुए डॉ. उषा पाटनी ने एक गीत की रचना की है। ऐसा पहली बार हुआ कि जब किसी ने प्रवचन को गीत के रूप में कलमबद्ध किया…
नित्यनित्य
जीव-अजीव का खेल सारा
मिज़ाज हो घूम रहा है जीवात्मा
से प्रीत लगा कर भूले
क्या कह रहा है जिनवाणी।
जो आया है सो जाएगा
नश्वर तन-धन और यौवन
नित्य रहेगा मात्र आत्मा
जिसका करना है अभिनंदन।
है अनित्य निज माता-पिता सुत
क्षणभंगुर जीवन की काली
प्रभु नाम जपले रसाना से
कल प्रात: वह फिर खिली ना खिली।
तन साधन है तप करने का
स्वस्थ हो तन ध्यान रखें
शुद्ध आहार-विचार ब्लॉक
एक दिन ईसा को भगवान।
माँगना हालाँकि बहुत बुरा है
धन की चाहत भी दुःखद
मित्र भावना यदि धर्ममय
पुण्य का फल पावै भाई। इन्द्रिय सुख की अभिलाषा
तो जीवन निःसार ही है
मुक्ति वधू की चाह रहे मन
यही धर्म का सार तो है।
प्रभु प्रतिमा के अनुरूप स्थिर हो
करो कामना भव सुदर्शे
विषय-वासना में ना रामे हम
पाप कषाय-व्यासन से सीखे।
परनिंदा और आत्म प्रशंसा
भव-भव में भटकेगी
पौद्गालिक कार्यान वर्गाणा
अस्त्रव – बंधागी।
कर फिर ही ना रहे, हम
संवर तत्व का ज्ञान
त्याग-तपस्या – संयम द्वारा
कर्म निर्जरा स्वयं करें।
प्रीत लगाओ निज आत्मा से
यह शरीर तो पड़ोसी है,
कब दे जाएगा धोखा,
अनन्या बने वह दोषी है।
आगम के आदेश को
गुरु पूज्यसागरजी समझाएं
जैसे श्रोता, वही शैली
जो बात गले में उतर जाए।
सहज-सरल-स्वभाव गुरु का
पद भी नहीं
आता, शरण गुरु का
प्रेम-स्नेह रसधार भी।
आईना दिखाते हैं हमको
अपनी परीक्षा करो स्वयं
धर्म मार्ग पर चलना है तो
श्रद्धा करो ना करो वहम्।
परम पूज्य परमेष्ठी पद पर
विराजमान हैं श्री श्री पूज्य
सागर भगवान के भाग्य जगे
छलक रही ज्ञानसागर
धर्मामृत का पान
करते भव्य जीव वादन
एक बार सब मिलकर बोलो
पूज्य सागर जी की जय-जयकार
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