छत्रपति नगर दलाल बाग में चल रहे पंचकल्याणक महोत्सव में रविवार की शाम आचार्य श्री विद्यासागर की स्मृति में काव्य मय कविताओं और शब्दों के भावों से एक कार्यक्रम हुआ। इस अवसर पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक लेजर शो भी प्रदर्शित किया गया। पढ़िए राजेश जैन दद्दू की रिपोर्ट…
इंदौर। छत्रपति नगर दलाल बाग में चल रहे पंचकल्याणक महोत्सव में रविवार की शाम आचार्य श्री विद्यासागर की स्मृति में काव्य मय कविताओं और शब्दों के भावों से एक कार्यक्रम हुआ। इस अवसर पर उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक लेजर शो भी प्रदर्शित किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत डॉक्टर साक्षी जैन के मंगलाचरण से हुई। कार्यक्रम का संचालन करते हुए भोपाल से पधारे कवि चंद्रसेन जैन ने अपनी काव्य मय भावांजलि प्रस्तुत करते हुए आचार्य श्री का स्मरण किया और सुनाया सूरज ने आलेख लिखा है और छाप दिया है नभ में/अब विद्यासागर जैसे योगी दुर्लभ है इस जग में/उन्होंने कविता का अंतिम पद्म पढ़ते हुए सुनाया सूरज ने आह्वान किया है समय-(आचार्य श्री द्वारा घोषित आचार्य पद के उत्तराधिकारी श्री समय सागर जी महाराज) का साथ निभाना है और समय सागर जी की ताजपोशी में कुंडलपुर में आना है।
आचार्य श्री के गृहस्थ जीवन की बहन ब्रह्मचारिणी शांता एवं स्वर्णा दीदी ने आचार्य श्री के बाल्य जीवन के संस्मरण सुनाते हुए कहा कि बालक विद्याधर बचपन में बहुत उद्दंड थे लेकिन उनके बचपन का चरित्र पूर्णतः धर्म से आपूरित था। वे परोपकारी थे और उनके विचार उच्च थे। उन्हें तैरने का बहुत शौक था। वह रोज घर के पीछे बनी बावड़ी में तैरने जाया करते थे और पानी में कूदते और तैरते समय ओम नमः सिद्धेभम्य : का उद्घोष किया करते थे। कभी-कभी पानी में ध्यान भी लगा लिया करते थे। उन्हें बचपन से ही साधुओं की संगति और उनके प्रवचन सुनना बहुत प्रिय था।
हर बार सीखने को मिलता था नया
सांसद शंकर लालवानी ने कहा कि मुझे तीन बार आचार्य श्री के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद पाने का सौभाग्य मिला। जब भी उनसे मिलता कुछ ना कुछ नया सीखने को मिलता था। वे कन्नड़ भाषी होते हुए हिंदी भाषा के समर्थक थे और मातृभाषा हिंदी के शब्दों का प्रयोग करने और हथकरघा वस्त्रों का उपयोग करने एवं उनके प्रचार प्रसार और इंडिया नहीं भारत बोलो की प्रेरणा दिया करते थे। मैंने उनकी प्रेरणा से ही सप्ताह में एक दिवस हथकरघा वस्त्र पहनना स्वीकार किया है। कवि एवं गीतकार डॉक्टर प्रखर जैन ने आचार्य श्री की मृत्यु पर एक बहुत ही मार्मिक कविता प्रस्तुत की। उन्हें मृत्यु ने, हमें मृत्यु के समाचार ने मारा/कहां मिलेंगे गुरु विद्यासागर जी के चरण दोबारा/बाद विद्यासागर के है समय का हमें सहारा ,उन्हें मृत्यु ने हमें मृत्यु के समाचार ने मारा।
भारत रत्न दिया जाए
वरिष्ठ पत्रकार संपादक कीर्ति राणा ने अपने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि वर्ष 1999 में गोमटगिरी पर हुए आचार्य श्री के चातुर्मासिक प्रवचन एवं उनके सानिध्य में होने वाले कार्यक्रमों को प्रतिदिन कवर किया करता था। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि त्याग ,तपस्या, संयम, समर्पण और चर्या और उनके प्रवचनों में आचार्य श्री जिस रत्नत्रय का उल्लेख करते थे। उनके पालन में वे हिमसागर की ऊंचाइयों पर रहे। आपने कहा कि आचार्य श्री का धर्म ,राष्ट्र,समाज, संस्कृति, जीव दया और मानव सेवा, एवं चिकित्सा ,स्त्री शिक्षा , मातृभाषा, हथकरघा आदि क्षेत्र एवं राष्ट्रहित के विकास में जो अवदान रहा है। उसे देखते हुए उन्हें भारत रत्न अलंकरण प्रदान किया जाना चाहिए।
हिंदी में बहस करने की दी प्रेरणा
समाजसेवी एवं आचार्य श्री के परम भक्त आजाद कुमार जैन ने आचार्य श्री के व्यक्तित्व की चर्चा करते हुए और भावांजलि देते हुए कहा कि उनका बाह्य व्यक्तित्व सहज, सरल और मनोरम था था लेकिन तपस्या में वे वज्र से भी कठोर साधक थे। वे वर्तमान युग के महान युग प्रवर्तक एवं दृष्टा थे। आचार्य श्री के प्रति लोगों की जो श्रद्धा रही है वै,सी श्रद्धा अन्य किसी साधु के प्रति देखने में नहीं मिलती। कवि नरेंद्र जैन ने कविता के माध्यम से अपनी भावांजलि प्रस्तुत करते हुए सुनाया नहीं बांधते थे कोई रिश्ता/फिर भी सबके दिल में थे/हर कोई उन्हें अपना कहता कैसे नाते रिश्ते थे। एक अन्य कविता का एक मुक्तक सुनाते हुए सुनाया यह संत बड़ा अलबेला,जिसमें दस धर्म है फैला/ अंतिम वक्ता के रूप में युवा विचारक एवं एडवोकेट उन्नित झांझरी ने संस्मरण सुनाते हुए कहा कि आचार्य श्री का पूरा जीवन ही एक खुली किताब था। उनका एक-एक शब्द हमारे जीवन को परिवर्तित करने की ताकत रखता था। जब पहली बार रामटेक में मैंने उनके दर्शन किए और मंच से भावना व्यक्त करने का अवसर मिला तो बाद में आचार्य श्री ने पूछा क्या करते हो तो मैंने कहा वकालत की पढ़ाई कर रहा हूं। आपका आशीर्वाद चाहता हूं तो उन्होंने कहा कि वकील बनोगे। उनके यह शब्द मेरे जीवन का टर्निंग प्वाइंट बन गया और उन्होंने मुझे हिंदी को बढ़ावा देने और न्यायालय में हिंदी में ही बहस और हस्ताक्षर करने की प्रेरणा दी। उनकी भावना के अनुसार में हिंदी में ही सब काम कर रहा हूं।
स्क्रीन पर उभरती छवि
इस अवसर पर आचार्य श्री के व्यक्तित्व और कृतित्व पर एक लेजर शो भी प्रदर्शित किया गया, जिसमें संवाद अनुसार आचार्य श्री की लेजर लाइट से एक छवि स्क्रीन पर उभरती थी। समारोह में नरेंद्र जैन पपाजी, हंसमुख गांधी, राजेंद्र जैन वास्तु, डॉक्टर दीपक जैन, डॉक्टर जैनेंद्र जैन, कैलाश जैन नेताजी, दिलीप जैन, अमित जैन, डी एल जैन, कमल जैन, मानिकचंद नायक, प्रकाश दलाल एवं मुक्ता जैन, संमता सोधिया आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे।
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