मूर्तिकला, भारतीय स्थापत्य कला के बारे में जितना गहराई से विवेचन करेंगे तो उतना ही यह हमें चमत्कृत करने के लिए विवश करती है। भारत की सरजमीं पर शिल्पकारों ने बेमिसाल शिल्प को गढ़ा है। एक ही पत्थर पर दो देवों की प्रतिमाएं आश्चर्य चकित भी करती है तो आंदोलित भी करती है। मूर्तियों की एक विशेषता होती है कि वह इतनी प्रभावी होती हैं कि मानव के शरीर को आध्यात्मिक चेतना से भर देती हैं। इंदौर से पढ़िए यह खबर…
इंदौर। मूर्ति कला में जैन धर्म के तीर्थंकर एवं देवी देवताओं की प्रतिमाएं संपूर्ण जगत में अपने आप में विशिष्ट स्थान रखती हैं। हर प्रतिमा में हमें कोई ना कोई नई जानकारी प्राप्त होती है। कुछ आकार प्रकार की दृष्टि से प्रसिद्ध है तो कोई अनुपम सौंदर्य लिए हुए आकर्षित किया करती है। कोई प्रतिमा अतिशयकारी होने से जग विख्यात है तो कोई अपनी शांत मुद्रा और प्रशांत वीतरागी छवि के कारण भक्तों को आकर्षित करती है। वर्द्धमानपुर शोध संस्थान के ओम पाटोदी ने बताया कि आदि महावीर प्रकल्प के अंतर्गत हम यहां दो ऐसी विशिष्ट प्रतिमाओं की जानकारी दे रहे हैं, जो एक ही पाषाण में दो तीर्थंकर के दर्शन का लाभ प्राप्त करवाती है।
ये प्रतिमा अपने विशेष शिल्पांकन की दृष्टि से दुनिया में एकमात्र प्रतिमा है। पहली प्रतिमा की जानकारी हमें कर्नाटक से मिली है और दूसरी प्रतिमा की जानकारी हमें उत्तरप्रदेश के देवगढ़ से मिली है। कर्नाटक की प्रतिमा एक सामान्य तीर्थंकर प्रतिमा है परंतु, जब हम इसे ग़ौर से देखते हैं तो इसमें हमें दो तीर्थंकर के दर्शन प्राप्त होते हैं। शिल्पकार ने इसके आधे हिस्से को प्रथम तीर्थंकर भगवान श्री आदिनाथ को उनके चिन्ह और विशेषताओं के साथ प्रदर्शित करने की कोशिश की है। वहीं आधे हिस्से में उसे इस प्रकार बनाया की वह अंतिम तीर्थंकर भगवान श्री महावीर स्वामी का दर्शन करवाती है। इसी प्रकार देवगढ़ की यह प्रतिमा एक ही शिला फलक पर इस तरह से बनाईं गई है कि आगे जब हम दर्शन करते हैं तो हमें आदिनाथ भगवान दिखाई देते हैं और जब हम घूमकर पीछे जाते हैं तो हमें अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के दर्शन होते हैं। यह अद्भुत सोच शिल्पकार की उम्दा सोच का परिणाम है।
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