जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के केवलज्ञान के दौरान के उपसर्ग की कहानी अद्भुत और विस्मयकारी हैं। जिनके बारे में जानकार जैन धर्मालंबी आश्चर्य और भक्ति भाव से नतमस्तक हो जाते हैं। भगवान के साथ हुए उपसर्ग की घटनाओं की विस्तृत जानकारी पढ़िए इंदौर से रेखा संजय जैन की स्टोरी में…
इंदौर। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ धर्मानुयायियों के लिए अति पूजनीय है। उनके दर्शन और पूजन-अर्चन के लिए जिनालयों में जैन श्रावक-श्राविकाएं दूर-दूर से आते हैं। भगवान पार्श्वनाथ के साथ घटित घटना पर आधारित जानकारी यहां दी जा रही है। इसके अनुसार 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ मुनि अवस्था में ध्यान कर रहे थे। उत्तर पुराण के अनुसार सात दिनों तक शंबर नामक ज्योतिषी ने भगवान पर उपसर्ग किया। यह शंबर देव कमठ का जीव था, जो पिछले दस भवों से बेर के कारण भगवान पर उपसर्ग कर रहा था। शंबर ने क्रोधवश महागर्जना की और महावृष्टि शुरू कर दी। इस प्रकार यमराज के समान अत्यधिक दुष्ट वह दुर्बुद्धि सात दिन तक लगातार विभिन्न प्रकार के महा उपसर्ग करता रहा। उसने छोटे-मोटे पहाड़ भी लाकर भगवान के पास गिरा दिए।
12 सौ साल पुरानी है हुम्बुजा पद्मावती में भगवान की प्रतिमा
इस उपसर्ग को दर्शाने वाली और तीर्थंकर के केवल ज्ञान प्राप्त करने वाली दो प्रतिमा दक्षिण भारत में स्थित हुम्बुजा पद्मावती में स्थापित हैं। ये प्रतिमा लगभग 1200 साल पुरानी है और इनका निर्माण महापुराण में आए उपसर्ग के अनुसार किया गया है। पहली प्रतिमा उपसर्ग के दौरान की है, जबकि दूसरी प्रतिमा उपसर्ग समाप्त होने के बाद की है। दोनों प्रतिमाओं के निर्माण में कुछ समय का अंतर है। हुम्बुजा पद्मावती के परम पूज्य जगतगुरु देवेंद्रकीति भट्टारक महास्वामी ने भी इन प्रतिमाओं का वर्णन किया है।
धरणेंद्र की रक्षा के लिए गोलाकार छतरी का उपयोग
पद्मावती देवी ने गोलाकार छतरी अपने पति धरणेंद्र के फण पर रक्षा करने के लिए लगा दी। पानी भी नीचे बहते हुए आने लगा तो पद्मावती देवी और उनके सभी साथी मिलकर जमीन उठा लेते हैं। ऊपर से जब ओले गिरने लगते हैं तो पद्मावती अपनी शक्ति से उनके ऊपर छाता लगा देती हैं। ताकि उनके ऊपर पानी न पड़े और ध्यान भंग न हो।
शंबर का पश्चाताप और भगवान का केवलज्ञान
दूसरी प्रतिमा में शंबर ज्योतिषी ने देव धरणेंद्र के फण के ऊपर चाकू जैसे धारदार शस्त्रों से उपसर्ग करना शुरू किया और धरणेंद्र देव को भगाने की कोशिश करते हैं, ताकि भगवान पार्श्वनाथ पर उपसर्ग कर सकें। भगवान पार्श्वनाथ का उपसर्ग दूर करने के लिए पद्मावती और धरणेंद्र डटे रहते हैं। इसी बीच भगवान को केवलज्ञान प्राप्त हो जाता है तो कमठ और शंबर देव भगवान के चरणों में बैठ जाते हैं। उनकी आंखों में शर्मिंदगी और पश्चाताप के भाव होते हैं। वह कहते हैं कि हमने आपको हर दृष्टि से नीचा दिखाने का प्रयास किया, लेकिन आप उच्च दृष्टि से ऊपर जाते जा रहे हैं। आप मोक्ष के मार्ग में हैं। हमें अपने कृत्य के लिए क्षमा करें।
…और भैरव पद्मावती अवतार
यह चित्र विशेष रूप से हुम्बुचा पद्मावती में लगा है। अन्य जगह में केवल भगवान पार्श्वनाथ पर उपसर्ग होता दिखाया है, लेकिन इस प्रतिमा में दिखाया गया है कि जब भगवान पर उपसर्ग हुआ तो पद्मावती और धरणेंद्र आए और उनके ऊपर भी उपसर्ग होने लगा। ऐसे में पद्मावती देवी ने अपने भयंकर रूप को धारण करके 24 हाथ बनाए और उपसर्ग दूर किया। जब पद्मावती 24 हाथ बनाकर शस्त्र हाथ में लेती हैं, तब आगम में उसे ही उनका भैरव पद्मावती अवतार कहा गया है। ये दोनों प्रतिमाएं हैं।
और कहीं नहीं है ऐसी जानकारी
इनके अलावा मुक्तागिरी, एलोरा, बदामी की गुफाओं में और अन्य-अन्य जगहों पर जहां भी उपसर्ग प्रकरण दिखाया गया है। वहां इतनी विस्तृत जानकारी नहीं है।
धरणेंद्र-पद्मावती का उपकार
यह धरणेंद्र और पद्मावती वही नाग-नागिन हैं, जिन्हें जलने से पार्श्व कुमार ने बचाया था। उनके इस उपकार की दृष्टि से उपसर्ग से भगवान पार्श्वनाथ को बचाने के लिए यह सब किया गया था।
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