कहानी जिन मंदिरों की समाचार

श्रीफल जैन न्यूज़ की आदिनाथ मंदिरों पर विशेष सीरीज: जयपुर के सांगानेर आदिनाथ का अद्भुत मंदिर, मंदिर के आखिरी तल तक कोई नहीं पहुंच सका, जानिए क्यों ?


सारांश

राजस्थान राजधानी जयपुर में, भगवान आदिनाथ का एक अद्भुत स्थान है संघी जी का मंदिर । दिगंबर जैन परंपरा का यह मंदिर यूं तो सात मंजिला है लेकिन आश्चर्यजनक रूप से पांच तल जमीन के नीचे धंसे हैं, पांचवे तल पर सिर्फ दिगंबर साधु जा सकते हैं लेकिन इसके आखिरी तल में अब तक कोई नहीं पहुंचा। जानिए विस्तार से मनीष गोधा की रिपोर्ट में ….


देश के विभिन्न हिस्सों में बने जैन मंदिर वास्तुशिल्प और अपनी विशिष्ट परंपराओं के लिए दुनिया भर में विख्यात है। इन मंदिरों में बनावट में ऐसे चमत्कार हैं, जिनके बारे में सुनकर सजह विश्वास नहीं होता। एक ऐसा जैन मंदिर, जिसका आधे से ज्यादा हिस्सा जमीन में धंसा हुआ है। राजस्थान के जयपुर में सांगानेर नाम कि एक जगह है जहां संघी जी मंदिर स्थापित है। यह मंदिर 7 मंजिला है लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि इस मंदिर के 5 तल जमीन में धंसे हुए हैं ।

अद्भुत है इसकी स्थापत्य कला

इस मंदिर की वास्तुकला और स्थापत्य आपको प्राचीन युग में ले जाएगा। मंदिर का निर्माण करने वाले कारीगरों ने पत्थर पर इतनी सुंदर कलाकृतियां उकेरी हैं कि इन्हें देख कर आप अचम्भित हो जाते हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान आदिनाथ की मूंगावर्णी चतुर्थकालीन प्रतिमा विराजित है, जिसके दर्शन कर असीम शांति का अनुभव होता है।

बहुत रोचक है मंदिर का इतिहास

बताया जाता है कि जहां संघी जी का मंदिर है वहां एक विशाल बावड़ी थी। उसके किनारे पर एक अति प्राचीन जीर्ण शीर्ण जिन चैत्यालय था जो तल्ले वाले मंदिर के नाम से प्रसिद्ध था। इस चैत्यालय के तलघर बावड़ी के अंदर थे। आठवी शताब्दी के उत्तरार्ध में बैसाख शुक्ला तीज के दिन आकस्मिक रूप से नगर की पश्चिम दिशा से एक सजा हुआ विशाल गजरथ चलता हुआ आया। रथ पर कोई महावत नही था। यह रथ बावड़ी के किनारे चैत्यालय के पास आकर रूक गया। रथ रुकते ही हजारों नगरवासी एकत्रित हो गए । सांगानेर जिसे उस समय संग्रामपुर के नाम से जाना जाता था, उसके सेठ भगवानदास संघी जी की हवेली भी इसी बावड़ी के पास ही थी । वे रथ के पास आये तो देखा कि रथ में भगवान आदिनाथ की दिगम्बर जैन प्रतिमा है । उन्होंने प्रतिमा को रथ से उतारकर बावड़ी किनारे प्राचीन मंदिर जी मे विराजमान किया और जैसे ही प्रतिमा को रथ से उतारा वैसे ही रथ अदृश्य हो गया । सेठ भगवानदास जी ने इस प्राचीन तल्ले वाले मंदिर को नवीन मंदिर में परिवर्तित किया और इस रूप में यह मंदिर बना ।

सात तल का है मंदिर

20 वीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्रचक्रवर्ती परम पूज्य आचार्य शांतिसागर महाराज यहां सन 1933 की मंगसिर बदी तेरस संघ सहित पधारे थे। आचार्य शांतिसागर जी महाराज ने आदिनाथ बाबा के दर्शन कर अलौकिक शांति का अनुभव किया ।
कहते हैं कि एक दिन स्वप्न में आचार्य श्री को यक्ष ने महाराज को यह तलघर में स्थित जिनायल की की जानकारी दी । तदनुसार महाराज ने पूजा वाले कमरे में गुफाद्वार पर कुछ दिन तक जाप किया और गुफा में अकेले ही प्रवेश कर सम्पूर्ण चैत्यायल को लेकर गुफा द्वार पर आ गए । उस समय आचार्य शांतिसागर जी महाराज ने अपनी उपदेश में कहा कि यह मंदिर सात मंजिला है। पांच मंजिला नीचे है और दो मंजिला ऊपर है। अंतिम दो तल्लों में कोई नहीं जा सकता है । मध्य की पांचवीं मंजिल में यह यह यक्षरक्षित रत्नमयी अलौकिक चैत्यालय विराजमान है। इसे बालयति, विशुद्ध साधक ही बाहर निकाल सकते हैं ।

फिर 38 वर्ष बाद जून सन 1971 में आचार्य देशभूषण जी महाराज ने इस चैत्यालय को तीन दिन के लिए निकाला। बड़ी धर्म प्रभावना हुई लेकिन इसे फिर से भूगर्भ में विराजमान करने में देर हो गई । समय पूर्ण होते ही कीड़ों-मकोड़ों का उपसर्ग आ गया और फिर इसे तुरंत भूगर्भ में विराजित किया गया।

इसके बाद सन 1987 में आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज ने तथा 10 मई सन 1992 को आचार्य श्री कुंथुसागर जी महाराज ने इस भव्य एवं अलौकिक चैत्यालय के दर्शन कराए । इसके बाद संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महाराज ससंघ का पदार्पण सांगानेर में हुआ और मुनि श्री सहित सारे मुनि संघ को अलौकिक शांति मिली। पूरा मुनि संघ 46 दिन तक यहां रुका । मुनि श्री ने संघी जी के मंदिर के वास्तु दोष हटाकर जीर्णोद्धार की प्रेरणा दी । तदनुसार जीर्णोद्धार हुआ तथा मंदिर को नया भव्य रूप दिया गया। मुनि श्री के बताए अनुसार वास्तुदोष हटने के बाद से यह क्षेत्र पले के मुकाबले और ज्यादा श्रद्धा का केन्द्र बन गया। दिनांक 12 जून 1994 को मुनि श्री प्रातः काल भूगर्भ स्थित यक्ष रक्षित चैत्यालय को तीन दिन के लिए निकाल कर लाए । प्रवेश करने के पूर्व आपने सात दिन तक ब्रह्म मुर्हूत में गुफा के द्वार पर बैठ कर जाप किया। सातवें दिन प्रातः 7.30 बजे गुफा में प्रवेश किया और कुछ समय बाद चैत्यालय ले कर आए। इसके बाद 1999 में मुनि श्री एक अन्य गुफा से भी भव्य चैत्यालय लेकर आए । भगवान आदिनाथ का यह मंदिर परम अतिशयकारी है और यहां पहुंचने में कोई समस्या भी नहीं है। जयपुर से हर तरह का साधन यहां आने के लिए उपलब्ध है । अगली बार जयपुर आएं तो भगवान आदिनाथ की अलौकिक प्रतिमा और मंदिर के दर्शन जरूर करें ।

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