समाचार

उत्तम आंकिंचन धर्म पर हुई प्रभावना : आकिंचन्य धर्म जैन शासन की विशेषता है- मुनि श्री विनम्र सागर जी महाराज


उत्तम आकिंचन्य का अर्थ है उत्कृष्ट अनासक्ति। यह धर्म कान से समझ में नहीं आएगा इसको समझने के लिए ध्यान लगाना होगा। उक्त उदगार छत्रपति नगर के दलाल बाग में मुनि श्री विनम्र सागर जी महाराज ने व्यक्त किये। पढ़िए सतीश जैन की यह विशेष रिपोर्ट…


इंदौर। मुनि श्री ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि आज उत्तम आकिंचन्य धर्म का दिन है। उत्तम आकिंचन्य का अर्थ है उत्कृष्ट अनासक्ति। यह धर्म कान से समझ में नहीं आएगा इसको समझने के लिए ध्यान लगाना होगा। सबसे पहले आप ध्यान की मुद्रा में बैठिए। यह धर्म गृहस्थों के लिए नहीं है। इस धर्म को प्राप्त करने के लिए वीतराग चारित्र चाहिए यानी मुनि बनकर ही ध्यान की अवस्था में ये धर्म प्राप्त होता है। दुनिया की सबसे दुर्लभ वस्तु होती है ,उपदेश प्राप्त होना। कोई बिरला व्यक्ति ही होता है, जो तत्व को सुन पाता है।

कुछ लोग मंदिर में आकर और धर्म सभा में सोते मिलते हैं। बिरला व्यक्ति ही इस तत्व को जान पाता है, उस सुनें हुए तत्व को कोई बिरला ही प्राप्त कर पाता है। उसमें से भी विरल है, जिनकी धारणाओं में आकिंचन्य धर्म उतरता है। आप बाहर के राग , द्वेष वर्षों पहले छोड़ चुके हैं, आसक्ति से ऊपर उठ चुके हैं फिर भी अंदर का राग, द्वेष, मोह आपको परेशान करता है। इससे ऊपर उठने के लिए साधक ध्यान की अवस्था में आकिंचन्य धर्म को प्राप्त करते हैं। सिद्ध शिला की और ले जाने वाला विमान अकेले ही इसको ले जाता है। संवाद करने वाले साधु आकिंचन्य धर्म से दूर हैं। साधना के धर्म पर पहुंच कर ही इस धर्म की प्राप्ति होती है। कर्म जो फलीभूत हुए उसका नाम है भाग्य, इससे ऊपर है आकिंचन्य धर्म।

आपने कहा कि बरसों हो गए इंद्रिय सुख से ऊपर उठे हुए, लेकिन साता – असाता कर्म अभी भी हमें परेशान करते हैं। साता में अच्छा लगता है, असाता में बहुत बुरा लगता है । मोहनीय कर्म ही साता- असाता उत्पन्न कर रहा है। राग, द्वेष की ग्रंथियां सहजता से नहीं टूटती।

मुनिवर कहते हैं कि आकिंचन्य धर्म जैन शासन की विशेषता है, यह जब भी मिलेगा सामायिक काल में ही मिलेगा और केवल योगियो को ही मिलेगा , अभिमानी को कभी नहीं मिलेगा ।

यह कार्यक्रम भी हुए

आज प्रातः 5:00 बजे से ही मांगलिक क्रियाएं प्रारंभ हो गई थी।

जैन समाज के प्रचार प्रमुख सतीश ने बताया ने बताया कि दोपहर २.३० बजे से तत्वार्थ – सूत्र का वाचन हुआ। रात्रि 7:00 बजे से संगीतमय आरती हुई।

इस अवसर पर सचिन जैन,राकेश सिंघई,सतीश डबडेरा, सतीश जैन, आनंद जैन , महेंद्र जैन चुकरु, श्रुत जैन केवलारी, अखिलेश सोधिया, शिरीष अजमेरा, के साथ ही बहुत अधिक संख्या में समाजजन मौजूद थे।पूज्य मुनि श्री निस्वार्थ सागरजी जी ,मुनिश्री निसर्ग सागर जी एवं क्षुल्लक श्री हीरक सागर जी भी मंच पर विराजित थे।

आचार्य श्री जी की पूजन के पश्चात , 9:00 बजे से मुनि श्री जी के प्रवचन हुए।

धर्म सभा का सफल संचालन ब्रह्मचारी मनोज भैया ने किया।

आप को यह कंटेंट कैसा लगा अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे।
+1
0
+1
0
+1
0

About the author

Shreephal Jain News

Add Comment

Click here to post a comment

You cannot copy content of this page

× श्रीफल ग्रुप से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें