आज का विचार
हम अपने आप में स्वयं को ढूंढे न कि किसी और को, दूसरों को देखेंगे तो सिर्फ अहंकार आएगा – आचार्य श्री सुंदर सागर जी
न्यूज सौजन्य- कुणाल जैन,
प्रतापगढ़, 21 जुलाई। जैन धर्म के प्रख्यात संत आचार्य श्री सुंदरसागर जी ने कहा है कि भगवान महावीर के शासन में उनकी वीतराग मुद्रा को देखकर यह प्रयास करना चाहिए कि वह वीतरागता, वह चेतना हमारे अंदर भी उत्पन्न हो जाए। वीतराग शासन में ही रागद्वेष छूटें, ऐसे भाव बनाएं। हमें दुनिया को नहीं, स्वयं में स्वयं को देखना है। स्वयं में अपनी आत्मा को देखना है। दूसरों को नहीं देखें। अपने स्वयं में जो है उसमें आनंद लें, दूसरों को देखने से अहंकार ही आता है।
जैन संत ने उदाहरण दिया कि अहंकार में जीते हैं तो वंश तक का विनाश हो जाता है रावण इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। तूफान आता है तो कड़क, लंबे ,घने ठूठ वृक्ष तूफान से उखड़ जाते हैं उनका अस्तित्व तक मिट जाता है, सिर्फ कोमल, छोटी घास जो झुकने का गुण रखती है वह तूफान का भी सामना कर लेती है। हमारा जैन शासन अहंकार, घमंड करना नहीं सिखाता है। भोजन दूसरे के घर में बना है तो आपका पेट नहीं भरेगा, आपका पेट आपके भोजन से ही भरेगा।
आचार्य श्री सुंदरसागर जी ने आगे कहा कि यदि आप आनंद लेना चाहते हो तो स्वयं में मस्त हो जाओ। अपने आप में आनंद से रहो । राग-द्वेष दिखते नहीं हैं, पर हर व्यक्ति में होते ही हैं।
आचार्य श्री सुंदरसागर जी ने यह भी कहा- भव्यआत्माओं! यही सोचना कि आप सामने वाले को देख - देख कर जो संकलेश करते है उससे आपकी अच्छी चीज भी आपके हाथ से निकल जाती है। आपके मन में यह भाव आ रहे हैं कि मैं इसका हूं, उनका हूं तो भावों की गड़बड़ हो रही है। संसार में जानो- देखो- समझो फिर जो काम का हो रहने दो और जो काम का नहीं है, उसे जाने दो।