आचार्य श्री विद्यासागर महाराज का समतापूर्वक समाधिमरण हो गया है। शनिवर रात 2.35 बजे आचार्य विद्यासागर महाराज अंतिम सांस ली। आचार्य श्री पिछले कई दिनों से बीमार थे और लगभग 6 महीने से वे डोंगरगढ़ के चंद्रगिरी में ही रुके हुए थे। उनके समाधिमरण पर श्रीफल जैन न्यूज की संपादक रेखा जैन ने उन्हें विशेष श्रद्धांजलि अर्पित की है…
इंदौ। जैन धर्म के ही नहीं, पूरे देश के आन-बान शान आचार्य श्री विद्यासागर को सच्ची श्रद्धांजलि तभी मानी जाएगी, जब हम उनके जीवन की कोई भी एक चर्या को अपने जीवन में अंगीकार करेंगे। आचार्य श्री के बारे में शब्द भी अपने आप को तुच्छ सा महसूस करते हैं। उनके जीवन काल, उनकी साधना, उनके तप, उनके कार्यशैली को शब्दों में बयां करना बेहद मुश्किल है।
देखते ही बनती थी आहारचर्या
भीषण सर्दी-गर्मी में भी केवल लकड़ी के पाटे पर ही बैठकर सुबह से शाम हो जाना उनके लिए आम था। वह रात में मात्र एक ही करवट पर तीन से चार घंटे की अल्प निद्रा लेते थे, शेष समय ध्यान में लीन रहते थे। आहारचर्या के लिए आचार्य श्री जब निकलते थे तो सैकड़ों श्रद्धालु उनके पड़गाहन के लिए खड़े रहते थे, उनकी आहारचर्या को भी बस एक टक देखते ही रहो। नमक, गुड़, फल, सब्जी, सूखे मेवे और दूध का त्याग होने के बाद भी आचार्य श्री हमेशा फिट दिखाई देते थे। वे आहार में केवल दाल, रोटी, चावल और पानी लेते थे। छह रसों में केवल घी ग्रहण करते थे, जिसका भी उन्होंने बाद में त्याग कर दिया था।
महिला उत्थान के सतत प्रयास
आचार्य श्री ने महिला विद्यालयों की स्थापना करवाई और अन्य सुधारकों के साथ मिलकर पूरे भारत में महिलाओं के लिए कई स्कूल खोले। आपके मार्गदर्शन पर संचालित श्री दिगंबर जैन संरक्षिणी सभा द्वारा “पूर्णायु आयुर्वेद चिकित्सालय एवं अनुसंधान विद्यापीठ”, सामाजिक स्वास्थ्य के लिए चिकित्सा क्षेत्र में छात्रों के समग्र विकास के लिए हमेशा प्रयास करता है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, यह न केवल शिक्षा की गुणवत्ता पर बल्कि नैतिक और मानवीय मूल्यों को विकसित करने पर भी जोर देता है। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए पूर्णायु आयुर्वेद चिकित्सालय एवं अनुसंधान विद्यापीठ की स्थापना की गई।
अहिंसा का प्रतीक है गौसेवा कार्य
आचार्य श्री का गौसेवा का कार्य भी समाज में अहिंसा का प्रतीक है और देश के लिए भी गौरव की बात है। आपने कई जगह गौशाला की स्थापना करवाई।
बेटियां देश की बच्चियां समाज का गौरव होती हैं। बेटियों के उत्थान के लिए भी आपने प्रतिभा स्थली, इंदौर में स्कूल और आवास व्यवस्था प्रदान करवाई।
आचार्यश्री चलते- फिरते भगवान थे, वो विहार के समय भी कोई भी जीव को मात्र णमोकार मंत्र के जाप व अपने हाथ के जादू से ठीक कर देते थे। आपका सौम्य सा चेहरा, आपका हंसता हुआ मुखड़ा, आपका सरल स्वभाव, आपकी प्राणी मात्र पर करूणा, दया- वात्सल्य हम सभी पर एक असीम छाप छोड़ कर गए हैं। आचार्य श्री की साधना को तीनों काल के प्राणी सदैव, युगों -युगों तक गुणगान करेंगे। ऐसे गुरु को शत -शत नमोस्तु, नमोस्तु, नमोस्तु….
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