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नीलांजना का नृत्य देख आदिकुमार को हुआ वैराग्य: भरत-बाहुबली को राज्य सौंपकर ली दीक्षा


आचार्य वसुनंदी जी महाराज ससंघ के सानिध्य में जैन अतिशय तीर्थ क्षेत्र सिहोनियाजी के पंचकल्याणक महोत्सव के चौथे दिन भगवान का तप कल्याणक महोत्सव मनाया गया। अस्थाई अयोध्या नगरी में पंचकल्याणक महोत्सव के तहत सुबह जाप्यानुष्ठान, अभिषेक, शांतिधारा, नित्य नियम पूजन, जन्म कल्याणक पूजन, नवग्रह शांतियज्ञ कार्यक्रम हुए। आचार्यश्री के प्रवचन भी हुए। पढ़िए अंबाह से अजय जैन की यह खबर…


अंबाह। आचार्य वसुनंदी जी महाराज ससंघ के सानिध्य में जैन अतिशय तीर्थ क्षेत्र सिहोनियाजी में चल रहे छह दिवसीय पंचकल्याणक महोत्सव के चौथे दिन भगवान का तप कल्याणक महोत्सव मनाया गया। सिहोनिया की बनाई गई अस्थाई अयोध्या नगरी में पंचकल्याणक महोत्सव के तहत सुबह जाप्यानुष्ठान, अभिषेक, शांतिधारा, नित्य नियम पूजन, जन्म कल्याणक पूजन, नवग्रह शांतियज्ञ कार्यक्रम हुए। इसके बाद महाराजश्री के मंगल प्रवचन हुए। तप कल्याणक के अंतर्गत बालक आदिकुमार से राजा बने भगवान ने मनुष्यों को असि, मसि, कृषि, शिल्प, वाणिज्य और कला की शिक्षाएं जीवन यापन के लिए प्रदान की। उन्होंने लोगों को ईमानदारी, अनुशासन व धर्म परायण में रहते हुए जीवन बिताने का संदेश दिया। वहीं इस वैराग्यमयी क्षणों को देखने और सुनने के लिए संपूर्ण अंचल के हजारों भक्तों ने शामिल होकर धर्म लाभ लिया। जैन आचार्य वसुनंदी जी महाराज ने कहा कि अयोध्या के महाराजराजाधिराज आदिनाथ प्रभू को राज्यसभा में नृत्य कर रही नीलांजना नामक देवी की क्षण मात्र में मृत्यु के क्षणभंगुरता को प्रगट करने वाले दृश्य को देखकर तत्क्षण वैराग्य उत्पन्न हुआ और प्रयागराज के वटवृक्ष के नीचे प्रभु ने महावैभव के साथ पहने वस्त्राभूषण का त्याग कर दिगंबर मुनि की दीक्षा धारण की।

वैराग्य के यह दृश्य देखकर भाव विभोर हुए श्रद्धालु

आचार्यश्री ने कहा कि धन्य है वे महापुरुष जो संसार की असारता त्यागकर मोक्ष का पुरुषार्थ अर्थात संयम पथ को अंगीकार कर कष्टों मे भी मुस्कराते हुए दिखाई देते हैं। ऐसे ही महापुरुष प्रभु आदिनाथ ने जीवन की सच्चाई को जान कर वैराग्य मार्ग को अपनाया। इसी बीच मंच पर दर्शाए गए वैराग्य के यह दृश्य देखकर पंडाल में उपस्थित श्रद्धालु भाव-विभोर हो गए। वैराग्य के दृश्य से महिलाओं के नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी। आचार्यश्री वसुनंदी जी महाराज ने श्रावक-श्राविकाओं को तप का महत्व समझाते हुए कहा कि तप कल्याण के समय भगवान आदिकुमार की पालकी को उठाने को लेकर देवताओं और मनुष्यों में विवाद हो गया। दोनों वर्ग पालकी उठाना चाहते थे। देवता लोग संयम धारण नहीं कर सकते । अतः ये अधिकार मनुष्यों का है। इसलिए मनुष्यों को अपने जीवन की श्रेष्ठता को समझते हुए श्रेष्ठ तप द्वारा जीवन को सार्थक बनाना चाहिए। पहले दोपहर में 32 हजार 000 मांडलिक राजाओं का भव्य राज दरबार लगा और भगवान आदिकुमार का राज्याभिषेक किया गया।

सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुए

भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ प्रभु के वैराग्य दृश्यों का मंचन किया गया। जिसमं बताया गया कि किस प्रकार से राजा आदि कुमार को वैराग्य उत्पत्ति होती है और वह सांसारिक सुख को त्याग कर राजपाट को त्याग कर वन विहार कर लेते हैं। कार्यक्रम को सफल बनाने पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष जिनेश जैन, आशीष जैन सोनू सहित पंचकल्याणक महोत्सव समिति, मंदिर कमेटी, जैन युवा क्लब एवं सोनू मित्र मंडल के पदाधिकारी और कार्यकर्ता मौजूद रहे।

रविवार को पंचकल्याणक में होगा कैवल्य ज्ञान

आयोजन कमेटी के प्रमुख पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष जिनेश जैन एवं आशीष जैन सोनू ने बताया कि रविवार को पंचकल्याणक महोत्सव में सुबह श्रीजी का अभिषेक, नित्य पूजन के बाद सुबह आदिनाथ की प्रथम अहारचर्या की रस्में होंगी। दोपहर में आदिनाथ को केवल्य ज्ञान की प्राप्ति होगी। साथ ही समवशरण की रचना होगी। जिसमें भगवान की दिव्य देशना बिखरेगी।

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