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'कण-कण में महसूस होते हैं आचार्यश्री विद्यासागर जी' ‘मन-मस्तिष्क चंदन की खुशबू की तरह बसी है आचार्यश्री विद्यासागर जी की स्मृति’


श्री आचार्यश्री विद्यासागर जी के बिना एक महिना गुजर गया, लेकिन मैं उन्हें कण-कण में महसूस करता हूं। आचार्यश्री विद्यासागर के सानिध्य में बिताए अनमोल पलों की स्मृति को साझा कर रहे हैं डॉ. जैनेंद्र जैन….


मैं दुनिया के उन भाग्यशाली लोगों में हूं जिन्होंने आचार्य श्री को साक्षात देखा है। उन पर दर्जन भर लेख लिखे हैं। मेरी आने वाली पीढिय़ां इस बात पर गर्व करेंगी कि मैंने श्रमण संस्कृति के महामहिम संत शिरोमणि आचार्य भगवान श्री विद्यासागर जी महा मुनि राज के साक्षात दर्शन किए हैं। उनसे चर्चा की है। उनको आहार कराने, उनके साथ विहार करने और उनकी वैयावृत्ति करने एवं उनके सानिध्य में होने वाले कार्यक्रम में दिगंबर जैन समाज छत्रपति नगर की ओर से रामटेक में, सिद्धवर कूट में एवं इंदौर में गोमटगिरी पर चातुर्मास निष्ठापन के बाद छत्रपति नगर में पधारने का एवं उनकी ही सन्निधि में चुन्नीलाल परिसर एमजी रोड पर संपन्न होने वाले समवषरण विधान की पत्रिका बनाने एवं श्री कमल जैन चैलेंजर से विधान आमंत्रण पत्रिका का आचार्य श्री के सानिध्य में मंच से विमोचन कराने का और मंच से ही अपनी बात रखने का परम सौभाग्य प्राप्त किया है।

आज आचार्य श्री साक्षात शरीर के रूप में हमारे बीच नहीं हैं लेकिन वह मुझे कण कण में महसूस होते हैं, आज 18 मार्च को आचार्य श्री को मोक्ष की ओर प्रस्थान किए पूरा एक महीना हो गया। मैं एक क्षण भी उनको भुला नहीं सकता। उनके साथ बिताए क्षण एवं उनकी स्मृति मेरे मन मस्तिष्क पर चंदन गंध की तरह अंकित है और सदैव अंकित रहेगी। उनकी स्मृति को शत-शत नमन।

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