आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ससंघ उरली कंचन में विराजित हैं। मुनिश्री सहर्ष सागर जी ने उनका गुणानुवाद करते हुए उनकी चर्याओं का बखान किया। गुरुवंदना करते हुए उनके गुणों को परमात्मा तुल्य बताया। पढ़िए उरली कंचन से अभिषेक पाटिल की यह खबर…
उरली कंचन महाराष्ट्र) आचार्यश्री विशुद्धसागर जी महाराज ससंघ उरली कंचन में विराजमान हैं। आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज जी के शिष्य मुनिश्री सहर्ष सागर जी ने बताया कि आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ससंघ का विहार मुंबई की ओर शुरु हैं। उन्होंने आचार्य श्री के बारे में कहा कि इस युग के लिए साक्षात परमात्म स्वरूप हैं। जिन्होनें अपने दृढ़ सम्यक्त्व, ज्ञान, चारित्र से स्व-पर का कल्याण किया है और कर रहे हैं। पूज्य गुरुदेव के इंद्रिय, अनिंद्रीय, अतींद्रीय वृत्ति अलौकिक हैं। इंद्रिय वृित्त सदा ही पारमार्थिक तत्व की खोज करती रहती है।जो कर्णेद्रिय है। वह सदा ही श्रुत रूपी अमृत का पान करने के लिए लालायित रहती हैं तथा कर्णेद्रिय पर की निंदा को सुनने के लिए अपनी योग्यता का त्याग कर देती है।
वाणी में माधुर्यता के बिना अन्य कुछ भी नहीं
मुनिश्री ने कहा कि गुरुदेव की नेत्र इंद्रिय सदा ही वीत रागता का अवलोकन करती है तथा सरागता में भी वीत रागता की शक्ति को अपने ज्ञानचक्षु से देखती है। गुरुदेव की स्पर्श इंद्रिय सदा ही देव-शास्त्र-गुरु के आधार का स्पर्श करती है। जिससे वह अपने आत्म तत्व को स्पर्श करने के उद्यम में अधिक दृढता को प्राप्त करते हैं। गुरुदेव की रसना इंद्रिया सदा ही हित, मीत, मधुर, विशद, भगवान महावीर द्वारा दिए गए तत्व का व्याख्यान करती हैं। भोजन में माधुर्य रस का सेवन नहीं है परंतु वाणी में माधुर्यता के बिना अन्य कुछ भी नहीं है।
गुरुदेव की निर्मल छवि, तन-मन को है सुखदायी।
गुरुदेव की निर्मल चर्या, सहर्ष मन को सहर्ष दायी।
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