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आचार्य श्री विशुद्धसागरजी महाराज का ‘डी लिट’ से सम्मानः भारती विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. विश्वजीत कदम की घोषणा


आचार्यश्री विशुद्धसागरजी महाराज का साहित्य में बहुत बड़ा योगदान है। दिगंबर जैन मुनियों की कठोर जीवनशैली का पालन करने वाले वे भारत में अग्रणी दिगंबर जैन आचार्य हैं। 550 से अधिक संतों का नेतृत्व, आचार्य श्री की समग्र कठोर तपस्या एवं साहित्य के मद्देनजर उन्हें भारती विद्यापीठ की ओर से डी लिट की उपाधि से सम्मानित किया जा रहा है। 2019 में संतशिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज को ‘डी.लिट’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। पढ़िए पुणे से अभिषेक अशोक पाटील की यह विशेष रिपोर्ट…


पुणे। आचार्यश्री विशुद्धसागरजी महाराज का साहित्य में बहुत बड़ा योगदान है। दिगंबर जैन मुनियों की कठोर जीवनशैली का पालन करने वाले वे भारत में अग्रणी दिगंबर जैन आचार्य हैं। 550 से अधिक संतों का नेतृत्व, आचार्य श्री की समग्र कठोर तपस्या एवं साहित्य को देखते हुए उन्हें भारती विद्यापीठ की ओर से डी लिट की उपाधि से सम्मानित किया जा रहा है। भारती विश्वविद्यालय के कुलपति और डॉ. विश्वजीत पतंगराव कदम ने बड़ी संख्या में मौजूद श्रद्धालुओं के समक्ष यह घोषणा की। कोल्हापुर के पास नांदणी गांव में आचार्यश्री के सानिध्य में पंचकल्याणम् प्रतिष्ठा एवं महास्तकाभिषेक समारोह विगत सप्ताह संपन्न हुआ। इस पूजा उत्सव में विधायक डॉ. विश्वजीत कदम मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने कहा कि गुरुदेव ने सत्यार्थ बोध, कर्म विपाक के साथ 250 से अधिक महान ग्रंथों की रचना की है। उनके ‘वस्तुत्व महाकाव्य’ का गोल्डन बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में पंजीकरण हो चुका है। आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज द्वारा मुनि दीक्षा के बाद सन 1995 से सन 2025 तक 153 पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सवों में ससंघ सानिध्य प्रदान कर तीर्थंकर भगवंतों की प्रतिमाओं में सूरी मंत्र प्रदान कर उन्हें पूजनीय बनाया है। इससे पहले भारती विश्वविद्यालय द्वारा 2019 में संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज को ‘डी लिट’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

नांदणी मठ के स्वस्तिश्री जिनसेन भट्टारक पट्टाचार्य महास्वामीजी द्वारा विधायक डॉ. विश्वजीत कदम से आचार्यश्री को ‘डीलिट’ प्रदान करने की इच्छा व्यक्त की थी। इस बारे में सभी संबंधित दस्तावेज़ दक्षिण भारत जैन सभा के अध्यक्ष एवं पंचकल्याणक प्रतिष्ठा पूजा महोत्सव एवं महामस्तकाभिषेक के उपाध्यक्ष रावसाहेब पाटिल ने तैयार किए।

आचार्य श्री विशुद्धसागर जी की जीवनी

चर्या शिरोमणी आचार्य श्री विशुद्धसागर जी महाराज का जन्म मध्यप्रदेश के भिंड में 19 दिसंबर 1971 को हुआ। उनका गृहग्राम रूर है और पूर्व नाम राजेंद्र है। उनकी प्राथमिक शिक्षा दसवीं तक हुई है। उनके पिता रामनारायण (समाधिस्थ मुनि श्री विश्वजीत सागर जी) एवं माता रत्तीबाई जैन (समाधिस्थ क्षुल्लिका विश्वमति माताजी) थीं। जिन्होंने दीक्षा लेकर देवलोक गमन किया था। राजेंद्र ने आचार्य श्री विराग सागर महाराज जी से 11 अक्टूबर 1989 को भिंड में क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की थी। तब उनका नाम क्षुल्लक श्री यशोधर सागर जी रखा गया। इस समय इनकी आयु 19 वर्ष की थी। उन्होंने 2 वर्ष बाद 19 जून 1991 को दीक्षा पन्ना नगर में ग्रहण की और उसके 6 महिने बाद 20 वर्ष की आयु में आचार्य श्री विराग सागर महाराज से श्रेयांसगिरी में 21 नवंबर 1981 को मुनि दीक्षा ग्रहण की थी और उनका नाम मुनि श्री 108 विशुद्धसागर जी महाराज रखा गया।

आचार्य पदारोहण 

आचार्य श्री विरागसागर महाराज जी ने विशुद्धसागरजी महाराज को परखकर औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में 31 मार्च 2007 को महावीर जयंती के पावन दिवस पर आचार्य पद प्रदान किया। मुनि दीक्षा के 15 वर्ष 6 माह बाद 35 वर्ष की आयु में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया गया।

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