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आचार्य भगवन विशुद्ध सागरजी संघ के बढते कदम मुंबई की ओर-सिद्ध सागरजीः नातेपूते में गुरू-शिष्य का मिलन होगा 


अढीव पंढरपूर पंचकल्याणक के उपरांत आचार्यश्री विशुद्ध सागरजी ससंघ का विहार मुंबई की ओर प्रारंभ हुआ है। 8 फरवरी को नातेपूते में गुरू-शिष्य का मिलन होगा। श्रमण मुनिश्री सारस्वत सागरजी और श्रमण मुनिश्री जयंत सागरजी नातेपूते में पूर्व से ही विराजमान हैं। श्रमण मुनिश्री सिद्धसागर नेे कहा की समय परिणमनशील है, काल परिवर्तित होते है और धर्म सारथी के रुप में धर्मस्थ को प्रवाहित करते रहते है। पढ़िए पंढरपूर, महाराष्ट्र से अभिषेक अशोक पाटील की यह पूरी खबर… 


पंढरपूर (महाराष्ट्र) श्रमण मुनिश्री सिद्धसागर महाराजजी ने बताया की अढीव पंढरपूर पंचकल्याणक के उपरांत आचार्य भगवन श्री विशुद्ध सागरजी महाराज ससंघ का विहार मुंबई की ओर प्रारंभ हुआ है। 8 फरवरी को नातेपूते में गुरू-शिष्य का मिलन होगा। श्रमण मुनिश्री सारस्वत सागर जी महाराज और श्रमण मुनिश्री जयंत सागरजी महाराज नातेपुते में विराजमान हैं।

शिथिल हुए धर्मरथ को गति 

श्रमण मुनिश्री सिद्धसागर महाराजजी ने आचार्य भगवन श्री विशुद्ध सागरजी के बारे में बताते हुए कहा की समय परिणमनशील है, काल परिवर्तित होते है और धर्म सारथी के रुप में महान पुरुष धर्मस्थ को प्रवाहित करते रहते है। इनकी पुण्य वर्गणाओ से शिथिल हुआ धर्मरथ गति प्राप्त करता है और अनेको जीव चल पडते है भगवत्ता प्राप्त करने के लिए। सम्प्रति मे ऐसे ही महापुरुष आचार्यश्री विशुद्ध सागरजी महाराज ने आकाश समधर्म को विस्तार प्रदान किया।

डाकूओं का शहर साधुओं की नगरी बना

गुरुदेव का जन्म मध्यप्रदेश के भिंड जिला के रूर ग्राम में हुआ। यह वही भिंड जिला जिसे कभी डाकुओ के शहर के नाम से जाना जाता था। परंतु जब से आचार्य भगवन का जन्म हुआ उनकी पुण्य वर्गणाओ के प्रभाव से अब यह शहर साधूओ की नगरी के नाम से संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। इस नगर से अनेको मुनि, आर्यिकाएं और व्रति बन चुके है।

महान ग्रंथ समयसार का स्वाध्याय किया 

मेरा सौभाग्य रहा जिस ग्राम रूर में जिस परिवार में आचार्य भगवन श्री विशुद्ध सागरजी का जन्म हुआ उसी घर में मेरा भी जन्म हुआ। बुंदेलखंड में कहते है पूत के लक्षण पालने में दिख जाते है। आचार्यश्री बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति के रहे, घर में रहते थे तब ही अल्प आयु में समयसार जैसे महान ग्रंथ का स्वाध्याय करते थे।

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