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आचार्य विद्यासागर ने किया था उत्तराधिकारी घोषित : कुण्डलपुर में निर्यापक मुनि समय सागर जी महराज का आचार्य पदारोहण समारोह 16 को


 वर्ष 1872 में चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज से प्रारम्भ हुई आचार्य परम्परा के वाहक थे आचार्य श्री 108 वीरसागर जी महाराज , आचार्य श्री 108 शिवसागर जी महाराज, आचार्य श्री 108 ज्ञानसागर जी महाराज और आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज और उसी परम्परा के नये वाहक बन रहे हैं निर्यापक मुनि 108 समयसागर जी महाराज। वह मंगलवार 16 अप्रैल 2024 को श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर में आचार्य पद ग्रहण करेंगे। पढ़िए अशोक कुमार जैन की रिपोर्ट…


कुंडलपुर। वर्ष 1872 में चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज से प्रारम्भ हुई आचार्य परम्परा के वाहक थे आचार्य श्री 108 वीरसागर जी महाराज , आचार्य श्री 108 शिवसागर जी महाराज, आचार्य श्री 108 ज्ञानसागर जी महाराज और आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज और उसी परम्परा के नये वाहक बन रहे हैं निर्यापक मुनि 108 समयसागर जी महाराज। वह मंगलवार 16 अप्रैल 2024 को श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर में आचार्य पद ग्रहण करेंगे।

प्रथम शिष्य भी

परम पूज्य श्री समय सागर जी महाराज का गृहस्थ अवस्था का नाम शांतिनाथ था, वे आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज और मुनि श्री योग सागर जी महाराज के गृहस्थ अवस्था के भाई हैं। समय सागर जी महराज आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के केवल भाई ही नहीं हैं बल्कि प्रथम शिष्य भी हैं। वे सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें आचार्य महाराज जैसे महान तपस्वी, महाज्ञानी, युगद्रष्टा, करूणा के सागर और राष्ट्र प्रेम से ओतप्रोत महापुरूष का मंगल सानिध्य बचपन से ही मिला। उन्होनें 2 मई 1975 को ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण किया, कुछ ही समय पश्चात् 18 दिसम्बर 1975 को क्षुल्लक दीक्षा श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र सोनागिरि जी में ली , लगभग दो वर्ष दस माह पश्चात् दिनांक 31 अक्टूबर 1978 को श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र नैनागिरि जी में ऐलक दीक्षा ग्रहण की और श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र द्रोणगिरि जी में दिनांक 8 मार्च 1980 को मुनि दीक्षा अपने चिरगुरू आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज से ग्रहण की।

आचार्य श्री सानिध्य में तपे

निर्यापक मुनि श्री समय सागर महाराज को आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज का 49 वर्षीय दीर्घ शिष्यत्व मिला, आचार्य श्री के सानिध्य में वे तपे और बड़े हुए हैं, चाहे ज्ञान की बात हो या कठोर और निष्काम साधना की बात हो वे शत प्रतिशत शुद्ध सोने की तरह कसौटी पर खरे उतरे हैं और यही कारण है कि आचार्य श्री ने समाधि के पूर्व अपना आचार्य पद त्याग कर श्री समय सागर जी महाराज को आचार्य पद हेतु सर्वथा उपयुक्त मानकर अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। मुनि श्री समय सागर जी महाराज अपने गुरू की तरह ही धीर और गंभीर है, आचार्य श्री द्वारा उत्तराधिकारी की घोषणा के पश्चात् आचार्य पद ग्रहण करने उन्होनें कोई अधीरता, कोई उत्सुकता या प्रसन्नता प्रदर्शित नहीं की, वरन उन्होनें चंद्रगिरि डोंगरगढ़ में स्पष्ट कर दिया कि मैनें अभी आचार्य पद ग्रहण करने की सहमति नहीं दी है और निर्णय समय पर छोड़ दिया। आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज पृथ्वी पर चलते फिरते भगवान ही थे, उनकी आज्ञा को, उनकी इच्छा को कौन अस्वीकार करने की भावना भी करता? आचार्य श्री के संघ के समस्त साधु, साध्वियों और सम्पूर्ण जैन समाज में, निर्यापक मुनि समय सागर जी को ही आचार्य नियुक्त करने पुरजोर समर्थन देते हुए प्रसन्नता की लहर व्याप्त है। सम्पूर्ण भारत के कोने-कोने से आचार्य के रूप में श्री समय सागर जी के पदारोहण की ऐसी एक पक्षीय स्वीकार्यता देखने विरले ही मिलती है।

क्षेत्र के विकास में रुचि 

आज वह पावन दिन आ ही गया जब श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर जी में 1008 भगवन आदिनाथ (बड़ेबाबा) की छत्रछाया में श्री समयसागर अब आचार्य श्री समय सागर बनेंगे और साक्षी होंगे, आचार्य श्री द्वारा दीक्षित हजारों साधु साध्वियां और जैन समाज का जन समुदाय। विश्वास पूर्वक कहा जा सकता हैं कि वे कुण्डलपुर के बड़े बाबा के मंगल आशीर्वाद से मोक्षमार्ग पर चलते हुए आचार्य श्री के मार्गदर्शन में प्रवर्तित समाजोपयोगी उपक्रमों का संरक्षण संवर्धन करते हुए चतुर्विध संघ के संचालन हेतु अपने कर्तव्यों और दायित्वों का निर्वहन करने में सफल होंगे। नवाचार्य श्री समयसागर जी महाराज का छतरपुर जिले में स्थित श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र नैनागिरि जी से गहरा संबंध रहा है, वे सत्तर और अस्सी के दशक में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के तीन वर्षायोगों और दो (ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन) वाचनाओं के दौरान लगभग 31 माह के प्रवास पर नैनागिरि जी में रहे हैं। अभी पिछले ही वर्ष बंडा (सागर) में वर्षायोग के पहले नैनागिरि जी में उनका आगमन हुआ था, उन्होनें क्षेत्र के विकास में गहरी रूचि प्रदर्शित की थी, उम्मीद है कि वे आचार्य के रूप में नैनागिरि जी संघ सहित पुनः पधारेंगे और नैनागिरि जी के विकास के लिए दिशा देंगे।

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