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जैन साधुओं की कठिन चर्या : आचार्य श्री ज्ञेयसागर आठ दिन के निर्जला उपवास पर


अष्टाहिन्का पर्व पर आचार्य श्री ज्ञेयसागर जी महाराज ने आठ दिन तक मौन रहकर निर्जला व्रत रखने का संकल्प लिया है। गुरुवार को उनके संकल्प को पांचवा दिन है। पांच दिन से आचार्य श्री मौन हैं। पढ़िए मनोज नायक की विस्तृत रिपोर्ट…


मुरैना। ज्ञानतीर्थ जैन मंदिर में विराजमान जैनाचार्य श्री ज्ञेयसागर जी महाराज आठ दिन का निर्जला उपवास कर रहे हैं। परम पूज्य सराकोद्धारक षष्ट पट्टाचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के शिष्य चर्याशिरोमणि, सप्तम पट्टाचार्य श्री ज्ञेयसागर जी महाराज ज्ञानतीर्थ जैन मंदिर में मुनिश्री ज्ञातसागर जी महाराज सहित विराजमान हैं।

अष्टाहिन्का पर्व पर आचार्य श्री ज्ञेयसागर जी महाराज ने आठ दिन तक मौन रहकर निर्जला व्रत रखने का संकल्प लिया है। गुरुवार को उनके संकल्प को पांचवा दिन है। पांच दिन से आचार्य श्री मौन हैं और उन्होंने अन्न या फल और जल तक ग्रहण नहीं किया है। गुरुदेव का संकल्प आगामी 6 मार्च को पूर्ण होगा। तब वह 7 मार्च को अन्न-जल ग्रहण करेंगे।

कठिन होती है चर्या

दिगम्बर जैन मुनियों की चर्या काफी कठिन होती है। वे एक-एक मास तक उपवास रखते हैं। कभी-कभी तो जल भी ग्रहण नहीं करते।वे सामान्य दिनों में भी दिन में केवल एक बार खड़े होकर करपात्रों में आहार ग्रहण करते हैं। आहार के बाद 24 घण्टे तक कुछ भी ग्रहण नहीं करते। 45 दिन में एक बार अपने सिर, दाढ़ी-मूछ के बाल हाथों से उखाड़ते हैं, जिसे केशलोंच कहा जाता है। वे सर्दी हो, गर्मी कभी भी वस्त्र अथवा कूलर, पंखे का उपयोग नहीं करते। पूरे जीवनकाल तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए कभी भी किसी वाहनादि का उपयोग नहीं करते। सम्पूर्ण भारतवर्ष में पद विहार ही करते हैं।

प्राण प्रतिष्ठा के लिए मुरैना में

आचार्य श्री ज्ञेयसागर जी महाराज के दादागुरु आचार्य श्री सुमतिसागर जी महाराज भी एक-एक माह तक निर्जला व्रत रखा करते थे। इसी कारण उन्हें मासोपवासी की उपाधि दी गई थी। पूज्य गुरुदेव श्री ज्ञेयसागर जी महाराज का चातुर्मास सहारनपुर में हुआ था। ज्ञानतीर्थ जैन मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के निमित्त आप मुरैना पधारे और अभी ज्ञानतीर्थ मुरैना में विराजमान हैं।

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