सारांश
भीलवाड़ा के जहाजपुर में ज्ञानतीर्थ के माध्यम से जिन दर्शन और संस्कृति को बढ़ा रही आर्यिका माताजी स्वास्तिभूषण जी की दीक्षा के आज 27 वां वर्ष है। इस अवसर पर श्रीफल जैन न्यूज़ ने माताजी का विशेष साक्षात्कार लिया । विस्तारपूर्वक पढ़ें …
श्रीफल जैन न्यूज़ – पंचकल्याण की क्या तैयारी है ?
माताजी स्वास्तिभूषण जी – आचार्य श्री 108 ज्ञान सागर दी महाराज की प्रेरणा से निर्मित भगवान आदिनाथ के विशाल जिन बिम्ब ज्ञान तीर्थ का पंच कल्याणक होने जा रहा है । भक्तों में बहुत उत्साह है । कलश आवंटन, सम्मान के कार्यक्रम कई नगरों में हो रहे हैं तथा ज्ञानतीर्थ पर पांडाल मंच भोजन आदि की तैयारी चल रही है ।
श्रीफल जैन न्यूज़ – अभी जो दीक्षा ले रहे हैं उनका अंतिम लक्ष्य तक वैराग्य कैसे रहे, कैसे सुनिश्चित होगा ?
स्वास्तिभूषण माताजी – सांसारिक भोगों की इच्छा के त्याग का नाम दीक्षा है। जब आत्मा के सुख के दर्शन हो जाएं, ज्ञान हो जाए तो बाहर के सुख फीके लगते हैं । उन भावों को स्थाई बनाए रखने के लिए शास्त्रों का पठन-पाठन, चिंतन-मनन आवश्यक है । इसी के द्वारा वैराग्य दृढ़ और स्थिर होता है ।
श्रीफल जैन न्यूज़ – आपके जीवन का लक्ष्य क्या है ?
स्वास्तिभूषण माताजी – हमारे जीवन का लक्ष्य संसार से मुक्ति, मोक्ष की प्राप्ति
श्रीफल जैन न्यूज़ – श्रावक के व्रतों का पालन कैसे हो ?
स्वास्तिभूषण माताजी- श्रावक के व्रत जीव को व्यर्थ के पापों के कषायों से बचाते हैं। जीवन को शांत,संतोषी, समृद्ध बनाते हैं। इसका पालन करने वालों की संगति करके और पूजा भक्ति एवं स्वाध्याय से भी इसे भी दृढ़ किया जा सकता है ।
श्रीफल जैन न्यूज़ – बचपन में वैराग्य का क्या कारण रहा ?
स्वास्तिभूषण माताजी – चौदह वर्ष की उम्र में छिंदवाड़ा में दो माताजी की दीक्षा देखी थी। उन्हें देखकर अंदर से विचार आए कि मुझे भी ऐसा बनना है । मैं भी दीक्षा लूंगी । बस एक प्रेरणा का बीज अंदर पड़ गया । सौभाग्य से उसी वर्ष का चातुर्मास आचार्य पु्ष्पदंत सागर जी का वहां पर हुआ । मन की मुराद पूरी हो गई । सुबह पांच बजे से उनके पास पाठ,आदि में जाती । आहार देना, स्वाध्याय सामयिक करना आदि, संत संगति में वैराग्य में प्रबलता आई और मैं इस मोक्ष मार्ग में आगे बढ़ गई ।
श्रीफल जैन न्यूज़ – ऐसे क्या संस्कार थे, जिस वजह से आर्यिका बनीं
स्वास्तिभूषण माताजी – इस जन्म के संस्कार तो नजर नहीं आते क्योंकि बचपन से ही त्याग करने का भाव स्वंयमेव होते रहते थे। एक सुना होगा – जो बिन बैरागी, वो पूर्व जन्म का त्यागी…बस ऐसा ही लगता है कि आत्म कल्याण की भावना से आर्यिका दीक्षा ग्रहण की ।
श्रीफल जैन न्यूज़ – गुरु चयन की क्या प्रक्रिया अपनाई ?
स्वास्तिभूषण माताजी – आचार्य पुष्पदंत सागर जी के चातुर्मास में अनेक अवसर संयम और त्याग के मिले । शिरोमणि आचार्य विद्यासागर जी का आभा मंडल ऐसा है कि स्वयंमेव खींचता है । आचार्य विद्याभूषण ,108 सम्मति सागर जी का चातुर्मास 1991 में सिवनी में हुआ । संघ में माताजी और दीदियां भी थी। अत : धार्मिक,आध्यात्मिक लाभ खूब मिला । गुरु चयन करने का कार्य शायद हम नहीं करते, गुरु ही हमारा चयन करते हैं । गुरु का आभा मंडल स्वयंमेव हमें अपनी और खींच लेता है । वहीं हमारे जीवन में दिशा निर्देशन देते हैं ।
श्रीफल जैन न्यूज – आपने जहाजपुर का मंदिर बनाया कैसे, कैसे भूगर्भ से प्रतिमा निकली ?
स्वास्तिभूषण माताजी – चैत्र का महीना,शुक्ल पक्ष, तेरस तिथि, मंगलवार,महावीर जयंती का दिन, भगवान मुनिसुव्रत नाथ एक अजैन के मकान की खुदाई में भूगर्भ से प्रकट हुए । अतिशयकारी प्रतिमाएँ देवों द्वारा रक्षित होती हैं । हमारा भी कुछ निमित्त था जो भगवान की सेवा करने का अवसर मिला । एक अतिशय क्षेत्र जहाज मंदिर बनाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ।
श्रीफल जैन न्यूज – आपको आर्यिका बने, 27 वां साल है । आपके अच्छे और बुरे अनुभव क्या रहे ?
स्वास्तिभूषण माताजी – संत, घर-गृहस्थी संबंधी विचारों को छोडकर आत्मा और परमात्मा के रास्ते पर चलकर भी जिन धर्म की प्रभावना करता है । इसी बीच यह बताना चाहूंगी कि पहले जब कोई मेरे अनुसार काम नहीं करता तो मुझे क्रोध आ जाता था । बडे गांव में देखा कि विधान की तैयारी नहीं है और गुरु यहां पहुंच रह हैं। मुझे लगा कि अब गुरुजी को गुस्सा आएगा । पर उन्होंने जरा भी गुस्सा नहीं किया । पांच मिनट तैयारी करवाई और विधान शुद्ध हो गया । ये मेरे जीवन के लिए शिक्षा बन गई । मैनें भी क्रोध करना छोड़ दिया । गुरुवर की समाधि मेरे लिए एक बुरा अनुभव है जो अभी भी महसूस होती है ।
श्रीफल जैन न्यूज़ – धार्मिक संकल्प के अलावा, नए बच्चों के संस्कार की कोई योजना है ?
स्वास्तिभूषण माताजी – स्कूल के माध्यम से बच्चों को बहुत कुछ सिखाया जा सकता है । इसीलिए मैं स्कूल की प्रेरणा करती हूं । बच्चों के लिए शिक्षा संस्कार शिविर लगाती हूं और जहाजपुर में स्कूल की प्लानिंग चल रही है ।
(इनपुट सहयोग – मनोज नायक )
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