न्यूज़ सौजन्य -कुणाल जैन
प्रतापगढ़। आचार्य सुन्दर सागर जी महाराज ने भक्तजनों और श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कहा है कि भगवान महावीर शासन के वीतराग शासन में बैठकर वीतराग साधुओं की वाणी सुनने और देखने का अवसर मिल रहा है। वीतराग मुद्रा देखकर दृष्टि बदल जाएगी। यह वाणी सुनकर आपने अपना दृष्टिकोण नहीं बदला तो समझ लेना कि आपके लिए यह वाणी बंजर भूमि में बीज डालने के बराबर ही है। जिस तरह फिल्म देखने के लिए आपको अपना ध्यान केंद्रित करना पड़ता है, उसी तरह वीतराग वाणी सुनने के लिए अपनी आत्मा की ओर ध्यान केंद्रित करना पड़ता है। गलत ध्यान लगाया तो गलत ही आएगा। आपकी आत्मा निर्मल है, पर आपने उसी आत्मा को कषाय बना दिया। यह कुछ वैसा ही है जैसे शक्कर की मिठास निकाल देने से शक्कर का हो जाता है। ध्यान तो आत्मा को निखारता है।
आचार्य सुन्दर सागर जी महाराज ने आगे कहा कि ज्ञान का काम है जानना। ज्ञान किसी वस्तु के पास नहीं जाता और न ही कोई वस्तु ज्ञान के पास आती है। ज्ञान का कार्य है जानना और वस्तु का काम है झलकना। जो तुम्हारे अंदर बैठा है, वही तुम्हारा भगवान है। उसकी आराधना करनी है। मंदिर के भगवान को देखो और अपने अंदर के भगवान को जानो। अगर अपने अंदर के भगवान को जान गए तो जीवन सफल है। मंदिर गए, वहां किसी ने कुछ कह दिया तो मंदिर जाना बंद। ऐसा नहीं होना चाहिए। अच्छाई देखिए और उसे जीवन में अपनाइए।