बांसवाड़ा। शहर की मोहन कॉलोनी दिगम्बर जैन मंदिर में आचार्य श्री सुन्दर सागर महाराज के सानिध्य में आचार्य श्री विमल सागर महाराज का 27 वां समाधि दिवस मनाया गया। समाज के श्रावक- श्राविका एवं संघ के भैया -दीदी द्वारा आचार्य विमल सागर महाराज की प्रतिमा का पंचामृत अभिषेक और आरती की गई। आचार्य श्री सुन्दर सागर महाराज, मुनि श्री पूज्य सागर महाराज, मुनि श्री शुद्ध सागर महाराज, आर्यिका सदय मति माता जी, आर्यिका सुकाव्य मति माता जी, आर्यिका सूक्ष्ल मति माता जी, आर्यिका सुरम्य मति माता जी सहित त्यागी समूह ने स्मरण सुनाकर आचार्य श्री विमल सागर महाराज को शब्द सुमन अर्पण कर श्रद्धान्जलि अर्पित की। इस अवसर पर रात में आचार्य विमल सागर पर बने भजनों की संघ्या की गई।
आचार्य श्री सुन्दर सागर महाराज ने कहा कि आचार्य विमल सागर महाराज ऐसे साधु थे जिन्हों कभी परंपरा का भेद नही किया। आचार्य श्री विमल सागर महाराज किसी को खाने के लिए अपने हाथों से फल दे देते थे तो उसके बिगड़े काम बन जाते थे। आज पूरी दुनिया मे उनके भक्त है आज भी वह अपने काम का निर्णय आचार्य श्री की फ़ोटो के समक्ष खेड़े होकर करते है। आचार्य विमल सागर महाराज के लिए सब एक सामना थे चाहे गरीब हो, अमीर हो, विशेष या सामान्य सब पर उनका वात्सल्य बरसता था। आचार्य को तीर्थो के संरक्षण के प्रति अधिक उत्साह था उन्हें अपने जीवन के 42 चातुर्मास में से 7 सम्मेदशिखर जी, 5 सोनागिरि, 1 राजगृही, बड़वानी में एक, श्रवणबेलगोला में एक ,गिरनार में एक में किए। आप ने अपने पूरे जीवन मे 5 हजार से अधिक उपवास किए थे। आप के दो मुख्य शिष्य थे आचार्य श्री सन्मति सागर, आचार्य भरत सागर महाराज। आचार्य विमल सागर महाराज अहिंसा का प्रचार -प्रसार बहुत किया।
आचार्य श्री निमित्तज्ञानी थे उन्हें यह ज्ञान आचार्य सुधर्म सागर महाराज से प्राप्त हुआ था। आचार्य श्री महावीरकीर्ती महाराज में आचार्य श्री विमल सागर महाराज को मुनि दीक्षा सोनागिर में थी उनकी दीक्षा में मुनि वीर सागर महाराज भी थे। मुनि वीर सागर महाराज दीक्षा के मंत्र बोल रहे थे और आचार्य श्री महावीरकीर्ती स्वामी दीक्षा के संस्कार कर रहे थे इसलिए ही मुनि दीक्षा के समय नाम विमल रखा था। विमल के वि का अर्थ वीर और म का अर्थ महावीर और ल का अर्थ लाल
आचार्य विमल सागर महाराज के जन्म का नाम नेमिचन्द्र था। उनका जन्म एटा के कोसमा में हुआ था। उनकी माता का नाम कटोरी बाई और पिता का नाम बिहारीलाल था। जेनेरु संस्कार आचार्य शांति सागर महाराज से, सात प्रतिमा आचार्य वीर सागर से ली, क्षुल्लक दीक्षा बड़वानी में 1950 में आचार्य महावीरकीर्ती से ली और नाम क्षुल्लक वृषभ सागर, ऐलक दीक्षा धरपुरी नाम सुधर्म सागर 1951, मुनि दीक्षा 1953 सोनागिरि में आचार्य महावीरकीर्ती से नाम विमल सागर ,आचार्य पद 1960 में हुआ था। आचार्य विमल सागर महाराज ने अपने हस्त कमलो से 42 मुनि दीक्षा, 28 आर्यिका, 24 क्षुल्लक,18 क्षुल्लिका और एक ऐलक दीक्षा प्रदान की था ।
कन्टेन -ब्रह्मचारी कनक जैन