बांसवाड़ा। आचार्य सन्मति सागर महाराज की 84वीं जन्म जयन्ती और आचार्य सुन्दर सागर महाराज का 15वां आचार्य पदारोहण दिवस आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर मोहन कॉलोनी में साधु संतों, भैया दीदी की उपस्थिति में मनाया गया। प्रात:काल भगवान का पंचामृत अभिषेक एवं आचार्य सुन्दर सागर महाराज का समाज के श्रावकों ने पाद प्रक्षालन किया।
दोपहर में आचार्य सुन्दर सागर महाराज के चरणों का प्रक्षालन जल, दूध,दही,अष्ठांग,हल्दी,लाल चंदन पुष्प आदि से किया गया तथा 108 मन्त्रों का उच्चारण करते हुए 108 पुष्प, नैवेद्य,दीपक,फल आचार्य श्री को समर्पित किए गए। साथ ही में संघस्थ साधुओं में आचार्य को शास्त्र भेट किया । मुनि पूज्य सागर महाराज, आर्यिका सुनय मति माता जी,आर्यिका सदय मति माता जी, आर्यिका समय मति माता,आर्यिका संस्कृतिश्री,आर्यिका सुकाव्य मति,आर्यिका सुलक्ष्य मति माता,आर्यिका सुरम्य मति माताजी ने आचार्य सन्मति सागर महाराज और आचार्य सुन्दर सागर महाराज का गुणगान किया।
अपने सम्बोधन में आचार्य सुन्दर सागर महाराज ने कहा कि आचार्य सन्मति सागर महाराज एक ऐसी आत्मा थे जिन्होंने लाखों लोगों का कल्याण किया है। वह सहज, सरल होने के साथ कठोर भी थे। धर्म और धर्मात्माओं के लिए उनके अंदर हमेशा वात्सल्य रहता था। उनके साथ 15 वर्षों तक रहकर बहुत कुछ सीखा है। वह मेरे लिए तो भगवान ही थे। किसके साथ और कैसा व्यवहार करना चाहिए, इसका उन्हें बहुत अनुभव था। आचार्यश्री हर परिस्थिति में दृढ़ रहे। उनके लिए गरीब, अमीर, बच्चा,बड़ा सब एक समान थे। किसी प्रकार का कोई भेद नहीं था। वह ख्यातिलाभ, पूजा से दूर रहते थे। वह कहते थे कि साधुजीवन साधना के लिए है, न कि आराम के लिए। उन्होंने आगे कहा कि साधना अपनी और प्रभावना गुरु की करनी चाहिए। साधु कैसा भी हो, उसे वात्सल्य रखना चाहिए। उसका पुण्य ही उसे संभालेगा। धर्म की प्रभावना नहीं हो तो कोई बात नहीं, पर अप्रभाव नहीं होना चाहिए। कैसी भी परिस्थिति हो, पर चर्या से समझौता नहीं करना चाहिए।