त्याग की भावना जैन धर्म में सबसे अधिक है क्योंकि जैन संत सिर्फ घर,द्वार ही नहीं यहां तक कि अपने कपडों का भी त्याग कर देते हैं और सम्पूर्ण जीवनभर दिगंबर मुद्रा धारण करके समाधि मरण की भावना को रखते हैं। उक्त विचार वर्णीनगर मड़ावरा में दशलक्षण पर्व के आठवें दिन उत्तम त्याग धर्म के अवसर पर मुनिश्री अक्षय सागर महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहे। पढ़िए राजीव सिंघई मोनू की रिपोर्ट…
ललितपुर। दशलक्षण पर्व हमें संदेश देकर जाते हैं कि धर्म के मार्ग पर चलकर ही व्यक्ति महान बनता है।उत्तम त्याग धर्म हमें त्याग के मार्ग पर चलकर मुक्ति के पथ पर चलाता है।’त्याग’ शब्द से ही पता लग जाता है कि इसका मतलब छोड़ना है और जीवन को संतुष्ट बनाकर अपनी इच्छाओं को वश में करना है। यह न सिर्फ अच्छे गुणवान कर्मों में बृद्धि करता है बल्कि बुरे कर्मों का नाश भी करता है। त्याग की भावना जैन धर्म में सबसे अधिक है क्योंकि जैन संत सिर्फ घर,द्वार ही नहीं यहां तक कि अपने कपडों का भी त्याग कर देते हैं और सम्पूर्ण जीवनभर दिगंबर मुद्रा धारण करके समाधि मरण की भावना को रखते हैं।
उक्त विचार वर्णीनगर मड़ावरा में दशलक्षण पर्व के आठवें दिन उत्तम त्याग धर्म के अवसर पर आचार्य श्रेष्ठ विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री अक्षय सागर महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहे। उन्होंने कहा कि उत्तम त्याग धर्म हमें यही सिखाता है कि मन को संतोषी बनाके ही इच्छाओं और भावनाओं का त्याग किया जा सकता है। त्याग की भावना भीतरी आत्मा को शुद्ध बनाकर ही होती है। बुरे कर्मों को त्यागकर व्यक्ति सद्कर्मों में लग जाऐ तभी उत्तम त्याग धर्म मनाना सार्थक है।
बताते चलें प्रातःकाल श्रीजी का अभिषेक,शांतिधारा करने का सौभाग्य एवं समवशरण महामंडल विधान में मुख्य पात्र बनने का सौभाग्य नाथूराम, शैलेंद्र, संदीप, सजल, सिद्धांत वैद्य परिवार, राजेंद्र जैन, अंकित जैन दुकान वाले, सनत मेडीकल परिवार, राजीव जैन रजौला, ऋषभ जैन गौना, सुरेंद्र जैन दुकानवाले, मिशन जैन डोंगरा, एडवोकेट मनोज जैन के परिवार को प्राप्त हुआ।
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