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आचार्य विद्यासागर समाधि स्मृति दिवस पर विशेष : आचार्य श्री के चरणों में समर्पित रचना


आचार्य श्री विद्यासागर जी का जीवन एक आदर्श है, जिसमें धर्म, समाज और मानवता के प्रति उनका समर्पण स्पष्ट दिखाई देता है। उनका जीवन यह सिद्ध करता है कि सही मार्ग पर चलते हुए, ज्ञान, अहिंसा और सेवा के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। उनकी उपदेशों और कार्यों का प्रभाव आने वाली पीढ़ियों पर अनंतकाल तक रहेगा। प्रथम समाधि स्मृति दिवस पर पढ़िए कवि, लेखक व समीक्षक संजय एम तराणेकर की विशेष रचना…


इस नवयुग के ही थे महावीर…!

वह इस नवयुग के ही थे महावीर,

सत्य, अहिंसा व कल्याण के तीर।

जन्म और परिवार कर्नाटक राज्य,

बेलगांव में सदलगा गांव चिकोड़ी।

दस-दस छियालीस में शरद पूर्णिमा,

शिशुरूप में एक चांद का अवतरण।

 

वह इस नवयुग के ही थे महावीर,

सत्य, अहिंसा व कल्याण के तीर।

संत शिरोमणि पूज्य समाधिस्थ संत,

आचार्य विद्यासागरजी भक्ति ग्रंथ।

सभी भक्तों को राह दिखाते गुरुदेव,

सभी उनकी शरण में देखते एकमेव।

 

वह इस नवयुग के ही थे महावीर,

सत्य, अहिंसा व कल्याण के तीर।

गुरुदेव के ज्ञान एवं चिंतन प्रभाव,

नई शिक्षा नीति मार्गदर्शक में भाव।

उन्हें न केवल दूजा स्थान मिला,

निर्देशों का अक्षरशः पालन किया।

 

वह इस नवयुग के ही थे महावीर,

सत्य, अहिंसा व कल्याण के तीर।

गुरुजी विराट व्यक्तित्व का प्रभाव,

प्रधानमंत्रीजी संबोधन में श्रद्धा भाव।

जीवनगाथा, गुणवर्णन होता असंभव,

व्यक्तित्व, तप, संयम व त्याग हैं संभव।

वह इस नवयुग के ही थे महावीर,

सत्य, अहिंसा व कल्याण के तीर।

हम सब हैं तुच्छ, क्या कहे गुरुदेव,

अनासक्त महायोगी, अपराजेय साधक,

संत शिरोमणि हो पूज्य हे युगदृष्टा!

प्रखर तपस्वी, महा-मनीषी, निस्यूही।

(संदर्भ: आचार्यश्री विद्या सागरजी महाराज)

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