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तीसरे तीर्थंकर भगवान संभवनाथ का मोक्ष कल्याणकः तिथि के अनुसार मोक्ष कल्याणक इस बार 3 अप्रैल को मनाया जाएगा सारांश


जैन धर्म के तीसरें तीर्थंकर भगवान संभवनाथ का मोक्ष कल्याणक चैत्र शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है। इस बार यह तिथि 3 अप्रैल को आ रही है। इस दिन दिगंबर जैन मंदिरों में विभिन्न अनुष्ठान और विधान किए जाएंगे। भगवान का अभिषेक और शांतिधारा के साथ ही अष्ट द्रव्य समर्पित कर निर्वाण लाडू चढ़ाए जाते हैं। श्रीफल जैन न्यूज की विशेष श्रंखला में आज उपसंपादक प्रीतम लखवाल की यह संयोजित प्रस्तुति पढ़िए…


इंदौर। जैन धर्म के तीसरे तीर्थंकर भगवान संभवनाथ का 3 अप्रैल को मोक्ष कल्याणक है। देश के कोने-कोने में दिगंबर जैन मंदिरों में इस दिन विशेष विधान आदि होंगे। भगवान संभवनाथ जी के मोक्ष कल्याण सहित अन्य जानकारी से रूबरू होते हैं। दिव्य जीवन रूप से संभवनाथ भगवान का जन्म भरत क्षेत्र में स्थित श्रावस्ती नगरी में राजा जितारी और रानी सेना देवी के घर हुआ था। जब भगवान संभवनाथ रानी सेना देवी के गर्भ में थे। पुराणों के अनुसार भगवान संभवनाथ जी का जन्म इक्ष्वाकु वंश में हुआ था। उनका चिन्ह अश्व (घोड़ा) था।

उन्होंने सम्मेत शिखर पर अपने सभी कर्मों का क्षय कर निर्वाण प्राप्त किया था। उन्होंने अपने पुत्र को राज्य सौंपकर जनता की गरीबी दूर करने का काम किया था। उन्होंने मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के दिन श्रमण दीक्षा स्वीकार की थी। 14 वर्ष की साधना के बाद कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ था। उनके पहले शिष्य का नाम चारूदत और पहली शिष्या का नाम श्यामा था। उनके पहले गणधर चारूजी थे। तीर्थंकर श्री संभवनाथ भगवान का अंतिम जन्म घातकी खंड द्वीप के ऐरावत क्षेत्र में स्थित क्षेमपुरी शहर में राजा विपुलवाहन के रूप में हुआ था। जन्म से ही भगवान संभवनाथ के पास तीन प्रकार का ज्ञान था, श्रुत, मति और अवधि।

राजकुमार संभवनाथ राजसी सुख-सुविधाओं के बीच पले-बढ़े, लेकिन उन्हें विलासितापूर्ण जीवनशैली में कोई रुचि नहीं थी। कर्मफल और माता-पिता की आज्ञा के अनुसार, राजकुमार संभवनाथ का विवाह हुआ और उचित आयु में राज्याभिषेक हुआ। बहुत लंबे और शांतिपूर्ण शासन के बाद, देवताओं के अनुरोध पर भगवान संभवनाथ ने दीक्षा ली। दीक्षा लेने के बाद, भगवान ने एक साल तक खूब दान किया (वर्षिदान) और उसके बाद उनका दीक्षा समारोह मनाया गया। तीर्थंकर भगवान के दीक्षा समारोह की पूरी व्यवस्था देवताओं ने की थी। राजा संभवनाथ के साथ 20 हजार अन्य राजाओं ने भी दीक्षा ली थी। 14 वर्ष की दीक्षा के पश्चात राजा संभवनाथ ने अपने संज्वलन कर्म समाप्त किए और कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को सर्वज्ञता, केवलज्ञान प्राप्त किया।

भगवान संभवनाथ के मुख्य गणधर चारु थे। उन्होंने संभवनाथ भगवान से पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया और फिर लोगों को उपदेश दिए; वे लोगों के जीवन में मोक्ष के बीज बो रहे थे। भगवान के दर्शन मात्र से ही कई लोग सर्वज्ञ हो गए और सभी कष्टों से मुक्त हो गए। भगवान संभवनाथ ने सम्मेद शिखर पर जाकर चैत्र शुक्ल षष्ठी के दिन मोक्ष प्राप्त किया। यह दिन जैन समाज के लिए बड़ी आस्था और श्रद्धा का दिन है।

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