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देव शास्त्र गुरु के प्रति आस्था कुएं के जल के समान: आस्था अंतर्मन से प्रकट होनी चाहिए-मुनिश्री शुध्द सागर जी 


सुमतिधाम में होने जा रहे पट्टाचार्य महोत्सव में शामिल होने के लिए इंदौर पधारे मुनिश्री शुद्धसागर जी महाराज ने समर्थ सिटी में प्रवचन दिए। वे श्री पारसनाथ जिनालय में धर्मसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने देव शास्त्र गुरु के प्रति आस्था को अहम बताया। इंदौर से पढ़िए ओम पाटोदी की यह खबर…


इंदौर। धर्म के प्रति श्रद्धा ऊपर से थोपी हुई नहीं होनी चाहिए। वह अंतर्मन से प्रकट होना चाहिए। वही श्रद्धा सच्ची होती है। जिस प्रकार कुएं का जल ज़मीन के अंदर से निकलता है तो जितना हम उसे निकलते हैं उतना ही बढ़ता जाता है। वहीं टंकी में भरा गया जल ऊपर से डाला जाता है जो कि कुछ समय बाद समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार आस्था की स्थिति को भी समझना चाहिए। यह बातें आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के शिष्य मुनिश्री शुध्द सागर जी महाराज ने श्री पारसनाथ जिनालय समर्थ सिटी में धर्म सभा में समाजजनों को संबोधित करते हुए कहीं।

उन्होंने आगे कहा कि प्रभु के प्रति आस्था टंकी के जल के समान ऊपर से थोपी हुई नहीं होनी चाहिए बल्कि कुएं के जल के सामान मन के अंदर से प्रकट होने चाहिए क्योंकि, अंतर्मन से प्रकट हुई आस्था हमेशा अभिवृद्धि को प्राप्त होती है और सच्चे देव शास्त्र गुरु के प्रति बढ़ती हुई आस्था ही मोक्ष मार्ग का साधन है। मुनि श्री शुध्दसागर एवं क्षुल्लक श्री अकम्पन सागर जी सुमतिधाम में होने जा रहे पट्टाचार्य महोत्सव में शामिल होने के लिए इंदौर पधारे हैं।

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