दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की 78वीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…
कथा कीर्तन कुल विशे भवसागर की नाव।
कहत कबीर या जगत में नाहि और उपाव।
कबीर इस संसार को “भवसागर” (जन्म और मृत्यु का चक्र) कहते हैं, जिससे पार पाना ही मानव जीवन का उद्देश्य है। वे बताते हैं कि इस भवसागर से पार पाने का एकमात्र साधन “कथा, कीर्तन और सत्संग” है। कथा का तात्पर्य है आध्यात्मिक ज्ञान, कीर्तन का अर्थ है ईश्वर की भक्ति में लीन होना, और सत्संग का मतलब है सद्गुरु या संतों के साथ रहकर सही मार्ग को अपनाना।
कबीर यह स्पष्ट कर रहे हैं कि कोई अन्य साधन (जैसे पूजा-पाठ, तीर्थ यात्रा, बाहरी आडंबर) भवसागर से पार नहीं करा सकता। केवल ईश्वर का नाम, सच्ची भक्ति और संतों का मार्गदर्शन ही मोक्ष का सच्चा उपाय है।
अगर इस दोहे को दैनिक जीवन में अपनाया जाए, तो यह सिखाता है कि हर इंसान को अच्छे विचार, सद्गुण और सच्चे मार्गदर्शन की जरूरत होती है। जिस तरह नाव के बिना कोई समुद्र पार नहीं कर सकता, उसी तरह सही मार्गदर्शन और ईश्वर की भक्ति के बिना कोई भी अपने जीवन को सार्थक नहीं बना सकता।
कबीर का यह दोहा हमें सिखाता है कि संसार में जन्म-मरण, दुख-सुख और मोह-माया का चक्र निरंतर चलता रहता है। इससे पार पाने के लिए बाहरी साधनों पर निर्भर न होकर, सच्ची भक्ति, संतों का सत्संग और आध्यात्मिक ज्ञान ही एकमात्र उपाय है। यही वह नाव है, जो हमें भवसागर से पार ले जा सकती है।
कबीर यहां एक महत्वपूर्ण सत्य प्रकट कर रहे हैं कि इस भवसागर से पार पाने के लिए कोई दूसरा उपाय नहीं है। धन, संपत्ति, प्रतिष्ठा, बुद्धि, या बाह्य धार्मिक कर्मकांड कुछ भी इस यात्रा में सहायक नहीं है। केवल भक्ति, सत्संग और सत्य का अनुसरण ही मुक्ति का मार्ग है।
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