दोहों का रहस्य समाचार

दोहों का रहस्य -65 बाहरी दुनिया में भटकने के बजाय अपने भीतर की यात्रा करें : जब तक हम स्वयं को नहीं पहचानते, तब तक हम दुनिया में भटकते रहेंगे


दोहे भारतीय साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं, जो संक्षिप्त और सटीक रूप में गहरी बातें कहने के लिए प्रसिद्ध हैं। दोहे में केवल दो पंक्तियां होती हैं, लेकिन इन पंक्तियों में निहित अर्थ और संदेश अत्यंत गहरे होते हैं। एक दोहा छोटा सा होता है, लेकिन उसमें जीवन की बड़ी-बड़ी बातें समाहित होती हैं। यह संक्षिप्तता के साथ गहरे विचारों को व्यक्त करने का एक अद्भुत तरीका है। दोहों का रहस्य कॉलम की 65वीं कड़ी में पढ़ें मंजू अजमेरा का लेख…


कस्तूरी कुंडली बसे मृग ढूंढे वन माही।

ऐसे घटि घटि राम है, दुनिया देखे नहीं॥


यह दोहा कबीर जी द्वारा व्यक्त की गई एक गहरी आत्मिक सच्चाई को दर्शाता है। इसमें मृग की कस्तूरी का उदाहरण दिया गया है, जो अपनी नाभि में बसी कस्तूरी की खुशबू को पहचानने में असमर्थ है और उसे पूरे जंगल में ढूँढता फिरता है। यह उदाहरण मानव जीवन और उसकी आत्मिक खोज के संदर्भ में दिया गया है।

कबीर जी का संदेश है कि जैसे मृग अपनी कस्तूरी को खोजने के लिए जंगल-जंगल भटकता है, वैसे ही मनुष्य ईश्वर, सुख, शांति और आत्मज्ञान को बाहरी दुनिया में ढूँढता है, जबकि वह सब कुछ उसके भीतर ही विद्यमान होता है। हर व्यक्ति के भीतर परमात्मा (राम) की उपस्थिति है, लेकिन अधिकांश लोग उसे बाहर ढूंढते रहते हैं। लोग मंदिरों, तीर्थस्थलों और अन्य बाहरी साधनों में ईश्वर की खोज करते हैं, जबकि असली खोज भीतर की होती है, जहां आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है।

कबीर जी इस दोहे के माध्यम से यह सिखाना चाहते हैं कि हम बाहरी दुनिया में भटकने के बजाय अपने भीतर की यात्रा करें। आत्म-ज्ञान, आत्म-जागृति और साधना के माध्यम से हमें ईश्वर को पहचानना चाहिए। जैसे मृग अपनी नाभि में बसी कस्तूरी की खुशबू को पहचान नहीं पाता, वैसे ही हम अपनी सच्ची आत्मा और ईश्वर को भीतर ही ढूंढ सकते हैं।

यह दोहा हमें यह शिक्षा देता है कि अगर हम संसार की माया से मुक्त होकर भीतर की ओर देखेंगे, तो हमें वास्तविक सुख, शांति और ईश्वर का अनुभव होगा। जीवन का असली उद्देश्य आत्मबोध प्राप्त करना है। जब तक हम स्वयं को नहीं पहचानते, तब तक हम दुनिया में भटकते रहेंगे। कबीर जी हमें प्रेरित करते हैं कि हम आत्मा के मार्ग पर चलें, क्योंकि वही हमें सच्ची शांति और आनंद प्रदान करेगा।

इसलिए, कबीर जी का यह संदेश स्पष्ट है कि हमें बाहरी यात्रा की बजाय अपनी अंतरात्मा की यात्रा करनी चाहिए, क्योंकि ईश्वर और आत्मज्ञान हमारे भीतर ही हैं।

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