निमाड़ में जन्में अंतर्मुखी पूज्य मुनिश्री पूज्य सागरजी का भव्य मंगल प्रवेश मंगलवार को प्रातः 8 बजे नगर में ओंकारेश्वर रोड रेल्वे गेट से हुआ। आप के मंगल आगमन को लेकर सभी समाजजन बड़े हर्षाेल्लास से लालायित थे आपके स्वागत में सभी समाजजनों ने अपने घरों के सामने रांगोली बनाकर मुनिश्री के पाद प्रक्षालन एवं आरती कर पुण्य संचय किया। याद रहें कि अंतर्मुखी मुनिश्री पूज्य सागरजी महाराज का जन्म स्थान निमाड़ के पिपलगोन का है। पढ़िए सनावद से सन्मति जैन काका की यह पूरी खबर…
सनावद। निमाड़ में जन्में अंतर्मुखी पूज्य मुनिश्री पूज्य सागरजी का भव्य मंगल प्रवेश आज 18 मार्च मंगलवार को प्रातः 8 बजे नगर में ओंकारेश्वर रोड, रेल्वे गेट से हुआ।
आपके मंगल आगमन को लेकर सभी समाजजन बड़े लालायित थे। स्वागत में सभी समाजजनो ने अपने घरों के सामने रांगोली बनाकर मुनिश्री के पाद प्रक्षालन एवं आरती कर पुण्य संचय किया।
जुलूस सभा के रूप में परिवर्तित हुआ
नगर पालिका परिषद की ओर से आशीष चौधरी के नेतृत्व में मुनिश्री का पुष्पों के द्वारा स्वागत किया गया। जुलूस नगर के मुख्य मार्गाे से होकर सभी जैन मंदिर होते हुवे श्री दिंगबर जैन पार्श्वनाथ बड़ा जैन मंदिर पहुंचा जहॉ जुलूस समाप्त होकर आचार्य वर्धमान सागर देशना सन्त निलय में सभा के रूप में परिवर्तित हुआ।
जहां सभा का शुभारंभ भगवान महावीर स्वामी के चित्र के समकक्ष सोमचंदजी जैन पिपलगोन, भारतेश्वर जैन पीपलगोन, दीपक जैन पीपलगोन, पवन कुमार जैन, प्रमोद कुमार जैन, बड़वाह एवं कमलेश कुमार डोंगरे एवं मुकेश जैन सनावद के द्वारा दीप प्रज्वलित कर किया गया।
मंगलाचरण व पाद प्रक्षालन किया गया
प्रदीप कुमार पंचोलिया के द्वारा मंगलाचरण किया गया एवं आराध्या, लक्षित, ओमांश एवं युवान के द्वारा स्वागत नृत्य प्रस्तुत किया गया। अगली कड़ी में मुनिश्री के पाद प्रक्षालन का सौभाग्य पवन कुमार गोधा परिवार सनावद को प्राप्त हुआ एवं शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य सुनील कुमार जैन डीपीएस परिवार सनावद को प्राप्त हुआ।
जैन धर्म की पताका को फहरा रहे
इसी क्रम में कमलेश कुमार डोंगरे ने कहा की जिस छोटे बच्चे बालक चक्रेश को मैंने बचपन में शिक्षा दी वो आज जैन समाज के सर्वाेच्च पद पर आसीन होकर जैनधर्म की पताका को फहरा रहे हैं। यह क्षण मेरे जीवन के यादगार पल रहेंगे। इनके माता-पिता धन्य हैं जिन्होंने इस जैन समाज के लिए गौरवांवित करने वाले बच्चे को जन्म दिया।
जीवन में मैत्री भाव बनाए रखना आवश्यक
इसी क्रम में मुनिश्री पूज्य सागरजी महाराज ने अपनी ओजस्वी वाणी का रसपान करवाते हुवे कहा की प्राणी मात्र का भाव बना हुआ है। जिस दिन जीवन से मैत्री का भाव जीवन से निकल जाए। उस दिन सुख के जाने का भाव भी रास्ता निकल जाएगा। इस संसार में हमारे पास कुछ रखने की वस्तु है तो मैत्री का भाव ही है।
क्योंकि जो परिस्थिति हमारे बीच बनी हुई है कि हम आपस में एक दूसरे के प्रति मैत्री का भाव हमारा नहीं है और जब मैत्री का भाव परस्पर नही होता है तो निश्चित रूप से विध्वंस होता है। जब विध्वंस होता है। तब सबसे ज्यादा नुकसान संस्कार, संस्कृति और इतिहास का होता है। इसलिए हमें सब से पहले हमारे जीवन में मैत्री के भाव बनाए रखना बहुत ही आवश्यक है।
आहारचर्या का सौभाग्य लश्करे परिवार को प्राप्त हुआ
कार्यक्रम पश्चात मुनिश्री की आहारचर्या करवाने का सौभाग्य किरण बाई लश्करे परिवार को प्राप्त हुआ। इस क्रम में शाम को मुनिश्री की सानिध्य में गुरु भक्ति आरती एवं आनंद की यात्रा सम्पन्न हुई। इस अवसर पर सभी समाजजन उपस्थित रहे।
Add Comment